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-:किताब के बारे में:-
“वादी-संवादी-विवादी स्वर” लेखक हरे कृष्ण शर्मा द्वारा रचित एक वैचारिक, वैदिक और राष्ट्रचेतना से ओत-प्रोत कृति है। यह पुस्तक सनातन धर्म की उस प्राचीन परम्परा को सामने लाती है, जिसमें वाद, विवाद और संवाद को सत्य की खोज का अनिवार्य साधन माना गया है।
पुस्तक में धर्म, इतिहास, राजनीति, राष्ट्र, संस्कृति और समकालीन सामाजिक-वैचारिक चुनौतियों पर लेखक ने निर्भीक और तर्कपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। इसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि सनातन (हिन्दू) धर्म ही ऐसा धर्म है जो मतभिन्नता को स्वीकार करता है और शास्त्रार्थ के माध्यम से आत्मपरिष्कार की अनुमति देता है।
कृति में कुल 50 स्वर (अध्याय) हैं, जिनमें लेखक ने हिन्दू समाज की वर्तमान स्थिति, ऐतिहासिक विकृतियों, वैचारिक संघर्षों, राष्ट्रवाद, धर्मान्तरण, सांस्कृतिक आत्मरक्षा तथा वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सनातन धर्म की भूमिका जैसे विषयों पर विचार किया है। प्रत्येक अध्याय स्वतंत्र रूप से भी पठनीय है।
लेखक ने श्रीकृष्ण के गीता-उपदेशों, वेदों, उपनिषदों तथा भारतीय दार्शनिक परम्परा के आधार पर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि कर्तव्यबोध और कर्म का नाम है। पुस्तक का उद्देश्य पाठक को वैचारिक रूप से सजग करना, प्रश्न करने की क्षमता विकसित करना तथा राष्ट्र और धर्म के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराना है।
“वादी-संवादी-विवादी स्वर” उन पाठकों के लिए एक विचारोत्तेजक ग्रंथ है जो समाज, धर्म और राष्ट्र के प्रश्नों पर गम्भीर मंथन करना चाहते हैं और सनातन दृष्टि से समकालीन यथार्थ को समझना चाहते हैं।
| ISBN 13 | 9788199391505 |
| Book Language | Hindi |
| Binding | Paperback |
| Publishing Year | 2025 |
| Total Pages | 276 |
| Edition | First |
| GAIN | 8KXDE33Q967 |
| Publishers | Garuda Prakashan |
| Category | Politics Freedom & Security Books |
| Weight | 280.00 g |
| Dimension | 14.00 x 22.00 x 1.70 |
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-:किताब के बारे में:-
“वादी-संवादी-विवादी स्वर” लेखक हरे कृष्ण शर्मा द्वारा रचित एक वैचारिक, वैदिक और राष्ट्रचेतना से ओत-प्रोत कृति है। यह पुस्तक सनातन धर्म की उस प्राचीन परम्परा को सामने लाती है, जिसमें वाद, विवाद और संवाद को सत्य की खोज का अनिवार्य साधन माना गया है।
पुस्तक में धर्म, इतिहास, राजनीति, राष्ट्र, संस्कृति और समकालीन सामाजिक-वैचारिक चुनौतियों पर लेखक ने निर्भीक और तर्कपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। इसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि सनातन (हिन्दू) धर्म ही ऐसा धर्म है जो मतभिन्नता को स्वीकार करता है और शास्त्रार्थ के माध्यम से आत्मपरिष्कार की अनुमति देता है।
कृति में कुल 50 स्वर (अध्याय) हैं, जिनमें लेखक ने हिन्दू समाज की वर्तमान स्थिति, ऐतिहासिक विकृतियों, वैचारिक संघर्षों, राष्ट्रवाद, धर्मान्तरण, सांस्कृतिक आत्मरक्षा तथा वैश्विक परिप्रेक्ष्य में सनातन धर्म की भूमिका जैसे विषयों पर विचार किया है। प्रत्येक अध्याय स्वतंत्र रूप से भी पठनीय है।
लेखक ने श्रीकृष्ण के गीता-उपदेशों, वेदों, उपनिषदों तथा भारतीय दार्शनिक परम्परा के आधार पर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि धर्म केवल आस्था नहीं, बल्कि कर्तव्यबोध और कर्म का नाम है। पुस्तक का उद्देश्य पाठक को वैचारिक रूप से सजग करना, प्रश्न करने की क्षमता विकसित करना तथा राष्ट्र और धर्म के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराना है।
“वादी-संवादी-विवादी स्वर” उन पाठकों के लिए एक विचारोत्तेजक ग्रंथ है जो समाज, धर्म और राष्ट्र के प्रश्नों पर गम्भीर मंथन करना चाहते हैं और सनातन दृष्टि से समकालीन यथार्थ को समझना चाहते हैं।
| ISBN 13 | 9788199391505 |
| Book Language | Hindi |
| Binding | Paperback |
| Publishing Year | 2025 |
| Total Pages | 276 |
| Edition | First |
| GAIN | 8KXDE33Q967 |
| Publishers | Garuda Prakashan |
| Category | Politics Freedom & Security Books |
| Weight | 280.00 g |
| Dimension | 14.00 x 22.00 x 1.70 |
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₹429.00
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