लेखक इस समय उम्र से बुजुर्ग अवश्य हैं परन्तु देशभक्ति और राष्ट्रीय कार्यो में नवयुवक जैसे ही उत्साही है। आगरा विश्वविद्यालय से बी ए की डिग्री प्राप्त की है और वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और ज्योतिषाचार्य की डिग्री प्राप्त कीहै। मनोविज्ञान और दर्शन और धार्मिक लेखन भी उनके प्रिय विषय रहे है।
आजीविका के लिए ये ज्योतिष को प्रयोग में लाते है। क्रान्तिकारी और देशभक्ति पूर्ण लेखन इनकी होबी है। लेखन का प्रारम्भ इन्होंने धर्म के विकृत होते जा रहे स्वरूप के बारे मे चार पुस्तकैं लिख कर किया।
तदुपरान्त उनका राष्ट्रवादी लेखन सतत चालू है और विदेशी सरकारों को भी सनातन हिन्दू धर्म को अपना राष्ट्रधर्म बनाने को सतत प्रेरित करते रहते हैं।
हिन्दू धर्म ही सभ्यता, मानवीयता, अहिंसा, सत्य और सद्भाव का प्रचारक था है और रहेगा!
उनसे जब पूछा गया कि अकेला चना कहां तक भाड को फोड सकता है। तो उनका उत्तर था कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रवर्तक अकेले मंगल पांडे थे और दूसरे सफल स्वतंत्रता संग्राम को सफल बनाने वाले एकमात्र सफल महापुरुष नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। हालांकि बाद में कुछ अंग्रेजों के चापलूसो ने स्वतंत्रता का श्रेय स्वयं ले लिया और स्वतंत्रता को अधूरा कर दिया है। इसे समझना चाहिए और तदनुसार अपने कर्त्तव्य का निर्धारण करके अपने कर्म में लगना चाहिए। विजय अवश्य मिलेगी।