Menu
Category All Category
Rajbhasha ka JhunJhuna (राजभाषा का झुनझुना)
by   Ravindra Shrivastava (Author)  
by   Ravindra Shrivastava (Author)   (show less)
Rajbhasha ka JhunJhuna (राजभाषा का झुनझुना)
Product Description

-:पुस्तक परिचय:-

मैंने अपने मन में कहा--गुजराती मेरी मातृभाषा है, पर वह राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती। देश के ३०वें हिस्से से ज्यादा गुजराती-भाषी नहीं हैं। उसमें मुझे तुलसीदास की ‘रामायण’ कहां मिलेगी? मराठी भाषा से मुझे प्रेम है, मराठी बोलने वाले लोगों में मेरे साथ काम करने वाले कुछ बड़े पक्के और सच्चे साथी हैं। महाराष्ट्रीयों की योग्यता, आत्म-बलिदान, उनकी शक्ति और उनकी विद्वत्ता का मैं कायल हूं। जिस मराठी भाषा का लोकमान्य तिलक ने गजब का उपयोग किया, उसे राष्ट्रभाषा बनाने की कल्पना मेरे मन में नहीं उठी। जिस वक्त मैं इस प्रश्न पर अपने दिल से दलीलें कर रहा था-- मैं आपको बता दूं कि उस वक्त मुझे हिन्दी भाषा-भाषियों की ठीक-ठीक संख्या भी मालूम न थी, उस वक्त मुझे खुद-ब-खुद यह लग रहा था कि राष्ट्रभाषा की जगह सिर्फ हिन्दी ही ले सकती है, दूसरी कोई जबान नहीं। क्या मैंने बंगला की प्रशंसा नहीं की? की है, और चैतन्य महाप्रभु, राजा राममोहन राय, रामकृष्ण, विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मातृभाषा होने के कारण मैंने उसे सम्मान की दृष्टि से देखा है। फिर मुझे लगा कि बंगला को हम अंतरप्रांतीय आदान-प्रदान की भाषा नहीं बना सकते। तो क्या दक्षिण की कोई भाषा बन सकती है? यह बात नहीं कि मैं इन भाषाओं से बिल्कुल ही अनभिज्ञ था। तमिल या दूसरी कोई दक्षिण भारतीय भाषा राष्ट्रभाषा कैसे बन सकती है? तब हिन्दी जबान, जिसे हिन्दुस्तानी या उर्दू भी कहते हैं, और जो देवनागरी या उर्दू लिपि में लिखी जाती है, वही माध्यम हो सकती है, और है....”

—मोहनदास करमचंद गांधी (हरिजन, १९३७)

‘‘....प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष कम करने में हिन्दी से जितनी सहायता मिलेगी, उतनी और किसी भाषा से नहीं। वह दिन दूर नहीं, जब भारत स्वतंत्र होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी हिन्दी।’’

—सुभाष चंद्र बोस

‘‘भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, उन भाषाओं के बीच भला अंग्रेजी कैसे देश की संपर्क भाषा बन सकती है? अंग्रेजी अलगाव पैदा करती है--जनता और नेता के बीच, राजा और प्रजा के बीच। देश से जब अंग्रेजी हटेगी तो उत्तर भारत के लोग भी दक्षिण की भाषा सीखेंगे। हिन्दी को अंग्रेजी का स्थान लेना है, प्रादेशिक भाषाओं का नहीं। लोगों में व्याप्त यह धारणा कि ‘देश में जब हिन्दी बढ़ेगी तो अन्य भारतीय भाषाएं घटेंगी’ ठीक नहीं है; बल्कि सही यह है कि ‘हिन्दी बढ़ेगी तो अंग्रेजी घटेगी या हटेगी’ और यही ठीक है....’’

—अलफाँस, हॉलैंड

-:हिन्दी : ‘राजभाषा का झुनझुना’:-

शातिराना साजिशें, पैंतरेबाजियां और भयावह चालबाजियां!

स्वाधीनता के बाद जब संविधान सभा, भारत का संविधान तैयार करने में पूरी शिद्दत से जुटी हुई थी और सभा के माननीय सदस्य, राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर बहस-मुबाहसे, सिर-फुटव्वल राजनीतिक विवाद में एक-दूसरे के कालर पकड़े खड़े थे, तब देश की समूची जनता आशा के पलक-पांवड़े बिछाये जनता-जनार्दन रूपी ‘संविधान के महामहिमों’ की तरफ ताक रही थी। लेकिन इन महामहिमों ने जब ‘देश की राष्ट्रभाषा’ के प्रश्न पर अपने निर्णय (जजमेंट) सुनाये तब सभी हक्का-बक्का-सा उन्हें देखते रह गये। यह निर्णय था उस भाषा को, जिसे देश की ७०-८० प्र.श. जानती-समझती थी, ६० प्र.श. से अधिक उसका बोलने-चालने, लिखने-पढ़ने में उपयोग करती थी, उसे देश की ‘राष्ट्रभाषा’ घोषित करने की बजाय ‘राजभाषा’ घोषित कर दिया, वह भी ऐसी घोषणा जो न तो कभी पूरी होने वाली थी और न ही हुई। इस समूचे षड्यंत्र के पीछे किन-किन ‘महामहिमों’ का हाथ था, यह सभी जानते हैं। उन्हें भी, जिन्होंने हिन्दी की उंगली पकड़ कर राजनीति की सार्वजनिक दुनिया में कदम रखा था; लेकिन देश की जनता द्वारा सिर पर बिठाने के तुरंत बाद ‘सिर्फ हिन्दी को स्वाधीन भारत की राष्ट्रभाषा बनाने’ के अपने वादों और आम जन के सामने की गयी इसी आशय की घोषणाओं को ठंडे बस्ते में डाल कर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ की अनथक मुहिम में जुट गये थे। हम यहां इन साजिशों के पीछे की अनकही दास्तान और हिन्दी की लंबी यात्रा की कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं, इसके लिए हमने भाषा विज्ञान और उससे संबंधित आलेखों का सहारा लिया है।

—रवीन्द्र श्रीवास्तव

Product Details
ISBN 13 9788199289581
Book Language Hindi
Binding Paperback
Publishing Year 2025
Total Pages 336
Edition First
GAIN Q28AEMN8KY0
Publishers Garuda Prakashan  
Category Politics   Language and Literature  
Weight 330.00 g
Dimension 15.50 x 23.00 x 2.50

Add a Review

0.0
0 Reviews
Product Description

-:पुस्तक परिचय:-

मैंने अपने मन में कहा--गुजराती मेरी मातृभाषा है, पर वह राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती। देश के ३०वें हिस्से से ज्यादा गुजराती-भाषी नहीं हैं। उसमें मुझे तुलसीदास की ‘रामायण’ कहां मिलेगी? मराठी भाषा से मुझे प्रेम है, मराठी बोलने वाले लोगों में मेरे साथ काम करने वाले कुछ बड़े पक्के और सच्चे साथी हैं। महाराष्ट्रीयों की योग्यता, आत्म-बलिदान, उनकी शक्ति और उनकी विद्वत्ता का मैं कायल हूं। जिस मराठी भाषा का लोकमान्य तिलक ने गजब का उपयोग किया, उसे राष्ट्रभाषा बनाने की कल्पना मेरे मन में नहीं उठी। जिस वक्त मैं इस प्रश्न पर अपने दिल से दलीलें कर रहा था-- मैं आपको बता दूं कि उस वक्त मुझे हिन्दी भाषा-भाषियों की ठीक-ठीक संख्या भी मालूम न थी, उस वक्त मुझे खुद-ब-खुद यह लग रहा था कि राष्ट्रभाषा की जगह सिर्फ हिन्दी ही ले सकती है, दूसरी कोई जबान नहीं। क्या मैंने बंगला की प्रशंसा नहीं की? की है, और चैतन्य महाप्रभु, राजा राममोहन राय, रामकृष्ण, विवेकानंद और रवीन्द्रनाथ ठाकुर की मातृभाषा होने के कारण मैंने उसे सम्मान की दृष्टि से देखा है। फिर मुझे लगा कि बंगला को हम अंतरप्रांतीय आदान-प्रदान की भाषा नहीं बना सकते। तो क्या दक्षिण की कोई भाषा बन सकती है? यह बात नहीं कि मैं इन भाषाओं से बिल्कुल ही अनभिज्ञ था। तमिल या दूसरी कोई दक्षिण भारतीय भाषा राष्ट्रभाषा कैसे बन सकती है? तब हिन्दी जबान, जिसे हिन्दुस्तानी या उर्दू भी कहते हैं, और जो देवनागरी या उर्दू लिपि में लिखी जाती है, वही माध्यम हो सकती है, और है....”

—मोहनदास करमचंद गांधी (हरिजन, १९३७)

‘‘....प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष कम करने में हिन्दी से जितनी सहायता मिलेगी, उतनी और किसी भाषा से नहीं। वह दिन दूर नहीं, जब भारत स्वतंत्र होगा और उसकी राष्ट्रभाषा होगी हिन्दी।’’

—सुभाष चंद्र बोस

‘‘भारत में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं, उन भाषाओं के बीच भला अंग्रेजी कैसे देश की संपर्क भाषा बन सकती है? अंग्रेजी अलगाव पैदा करती है--जनता और नेता के बीच, राजा और प्रजा के बीच। देश से जब अंग्रेजी हटेगी तो उत्तर भारत के लोग भी दक्षिण की भाषा सीखेंगे। हिन्दी को अंग्रेजी का स्थान लेना है, प्रादेशिक भाषाओं का नहीं। लोगों में व्याप्त यह धारणा कि ‘देश में जब हिन्दी बढ़ेगी तो अन्य भारतीय भाषाएं घटेंगी’ ठीक नहीं है; बल्कि सही यह है कि ‘हिन्दी बढ़ेगी तो अंग्रेजी घटेगी या हटेगी’ और यही ठीक है....’’

—अलफाँस, हॉलैंड

-:हिन्दी : ‘राजभाषा का झुनझुना’:-

शातिराना साजिशें, पैंतरेबाजियां और भयावह चालबाजियां!

स्वाधीनता के बाद जब संविधान सभा, भारत का संविधान तैयार करने में पूरी शिद्दत से जुटी हुई थी और सभा के माननीय सदस्य, राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर बहस-मुबाहसे, सिर-फुटव्वल राजनीतिक विवाद में एक-दूसरे के कालर पकड़े खड़े थे, तब देश की समूची जनता आशा के पलक-पांवड़े बिछाये जनता-जनार्दन रूपी ‘संविधान के महामहिमों’ की तरफ ताक रही थी। लेकिन इन महामहिमों ने जब ‘देश की राष्ट्रभाषा’ के प्रश्न पर अपने निर्णय (जजमेंट) सुनाये तब सभी हक्का-बक्का-सा उन्हें देखते रह गये। यह निर्णय था उस भाषा को, जिसे देश की ७०-८० प्र.श. जानती-समझती थी, ६० प्र.श. से अधिक उसका बोलने-चालने, लिखने-पढ़ने में उपयोग करती थी, उसे देश की ‘राष्ट्रभाषा’ घोषित करने की बजाय ‘राजभाषा’ घोषित कर दिया, वह भी ऐसी घोषणा जो न तो कभी पूरी होने वाली थी और न ही हुई। इस समूचे षड्यंत्र के पीछे किन-किन ‘महामहिमों’ का हाथ था, यह सभी जानते हैं। उन्हें भी, जिन्होंने हिन्दी की उंगली पकड़ कर राजनीति की सार्वजनिक दुनिया में कदम रखा था; लेकिन देश की जनता द्वारा सिर पर बिठाने के तुरंत बाद ‘सिर्फ हिन्दी को स्वाधीन भारत की राष्ट्रभाषा बनाने’ के अपने वादों और आम जन के सामने की गयी इसी आशय की घोषणाओं को ठंडे बस्ते में डाल कर ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ की अनथक मुहिम में जुट गये थे। हम यहां इन साजिशों के पीछे की अनकही दास्तान और हिन्दी की लंबी यात्रा की कहानी प्रस्तुत कर रहे हैं, इसके लिए हमने भाषा विज्ञान और उससे संबंधित आलेखों का सहारा लिया है।

—रवीन्द्र श्रीवास्तव

Product Details
ISBN 13 9788199289581
Book Language Hindi
Binding Paperback
Publishing Year 2025
Total Pages 336
Edition First
GAIN Q28AEMN8KY0
Publishers Garuda Prakashan  
Category Politics   Language and Literature  
Weight 330.00 g
Dimension 15.50 x 23.00 x 2.50

Add a Review

0.0
0 Reviews
Frequently Bought Together

Garuda Prakashan

This Item: Rajbhasha ka JhunJhuna (राजभाषा का झुनझुना)

₹599.00

Choose items to buy together
Rajbhasha ka JhunJhuna (राजभाषा का झुनझुना)
by   Ravindra Shrivastava (Author)  
by   Ravindra Shrivastava (Author)   (show less)
Verify Verified by Garuda
verified-by-garuda Verified by Garuda
₹599.00
₹599.00
Frequently Bought Together

Garuda Prakashan

This Item: Rajbhasha ka JhunJhuna (राजभाषा का झुनझुना)

₹599.00

Choose items to buy together
whatsapp