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1947 mein Punjab mein Muslim League ka Sikho'n va Hinduon par hamla
by   Sanjeet K Srivastava (Author)  
by   Sanjeet K Srivastava (Author)   (show less)
Punjab mein Muslim League ka Sikho'n va Hinduon par hamla
Product Description

-:पुस्तक परिचय:-

मूल पुस्तक की प्रासंगिकता

मूल पुस्तक 1950 में आंग्ल भाषा में लिखी गई थी। इस पुस्तक को पूर्व पंजाब के संगरूर जिले के एक सिख गुरबचन सिंह तालिब ने लिखा था। पुस्तक को लिखते समय, लेखक की आयु 39 वर्ष थी। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के समय सिख नेशनल कॉलेज लाहौर में प्राध्यापक थे। अतएव पंजाब की त्रासदी को उन्होंने प्रत्यक्ष देखा था। 1947 की त्रासदी में पश्चिमी पंजाब से आने वाले शरणार्थियों की पीड़ा का उन्होंने स्वयं अनुभव किया था। उन्होंने विभिन्न स्रोतों से सूचनाओं को एकत्र करने में तीन वर्ष लगाए तथा 1950 में यह मूल पुस्तक सामने आयी। यह विस्मयजनक तथ्य है कि भारत सरकार की ओर से सरकारी तौर पर इस प्रकार की कोई पुस्तक उस समय तथा बाद में भी नहीं आयी। स्वतंत्र भारत के शैक्षिक पाठ्यक्रमों में भी इस भीषण त्रासदी का केवल सतही उल्लेख ही मिलता है।

पुस्तक की आधुनिक दौर में प्रासंगिकता इस तथ्य में निहित है कि आज एक बार फिर ठीक वही परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयी हैं जो 1946-47 में थीं तथा जिनके कारण भीषण दंगे तथा अंततः भारत का विभाजन हुआ था। यदि दो-टूक शब्दों में कहा जाए तो विखंडित भारत एक और विभाजन के कगार पर खड़ा है। यदि हम इस विभाजन से बचना चाहते हैं तो हमें उन परिस्थितियों को जानना होगा जो 1946-47 के अखंड भारत में थीं ताकि हम आज उनसे शीघ्र सबक लेकर कुछ ऐसा प्रयास करें कि एक और विभाजन तथा रक्तरंजित दंगों से बच सकें।

हमें यह स्मरण रखना होगा कि जो राष्ट्र अपनी आपदाओं तथा त्रासदियों को इतिहास के अविस्मरणीय पृष्ठों में लिपिबद्ध करता है तथा एक संतत अविच्छिन्न परंपरा के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को संप्रेषित करता है, वही विपरीत परिस्थितियों में धैर्य व साहस का परिचय देते हुए विपत्ति से बाहर आने में सफल होता है। परंतु जो राष्ट्र अपने इतिहास को नकारता है उस राष्ट्र का विनाश एक ठंडी हवा के हल्के झोंके से भी हो सकता है।

कटु अनुभवों से लाभ न लेने वाला अथवा उन्हें नकारने वाला व्यक्ति कसाई की दुकान पर पंक्तिबद्ध खड़े हुए उन बकरों के मानिंद होता है जो कुछ समय पूर्व उसी के सम्मुख कत्ल किए जाने वाले अपने भाइयों की पीड़ा नहीं समझता तथा इसके विपरीत अपने पीछे वाले बकरे से घास के तिनकों के लिए खींचतान करता है। क्या आज भारतीयों की स्थिति इन बकरों जैसी नहीं है?

यह पुस्तक भारतीयों को इस बकरा वृत्ति से बाहर लाने तथा शत्रु बोध से परिचित करने के उद्देश्य की पूर्ति करती है। इतिहास हमारे कटु अनुभवों का लेखा जोखा होता है जो मातृभाषा में ही अधिक ग्राह्य होता है। इस दृष्टि से इस पुस्तक का अतिशय महत्व है। विभाजन की त्रासदी पर यह पहली अनूदित हिन्दी पुस्तक है। अतएव हर भारतीय को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।

Product Details
ISBN 13 9798885752695
Book Language Hindi
Binding Paperback
Publishing Year 2025
Total Pages 400
GAIN NHS9Y3CNRG0
Publishers Garuda Prakashan  
Category History   Indian History  
Weight 390.00 g
Dimension 15.24 x 23.00 x 2.50

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-:पुस्तक परिचय:-

मूल पुस्तक की प्रासंगिकता

मूल पुस्तक 1950 में आंग्ल भाषा में लिखी गई थी। इस पुस्तक को पूर्व पंजाब के संगरूर जिले के एक सिख गुरबचन सिंह तालिब ने लिखा था। पुस्तक को लिखते समय, लेखक की आयु 39 वर्ष थी। वह स्वतंत्रता प्राप्ति के समय सिख नेशनल कॉलेज लाहौर में प्राध्यापक थे। अतएव पंजाब की त्रासदी को उन्होंने प्रत्यक्ष देखा था। 1947 की त्रासदी में पश्चिमी पंजाब से आने वाले शरणार्थियों की पीड़ा का उन्होंने स्वयं अनुभव किया था। उन्होंने विभिन्न स्रोतों से सूचनाओं को एकत्र करने में तीन वर्ष लगाए तथा 1950 में यह मूल पुस्तक सामने आयी। यह विस्मयजनक तथ्य है कि भारत सरकार की ओर से सरकारी तौर पर इस प्रकार की कोई पुस्तक उस समय तथा बाद में भी नहीं आयी। स्वतंत्र भारत के शैक्षिक पाठ्यक्रमों में भी इस भीषण त्रासदी का केवल सतही उल्लेख ही मिलता है।

पुस्तक की आधुनिक दौर में प्रासंगिकता इस तथ्य में निहित है कि आज एक बार फिर ठीक वही परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयी हैं जो 1946-47 में थीं तथा जिनके कारण भीषण दंगे तथा अंततः भारत का विभाजन हुआ था। यदि दो-टूक शब्दों में कहा जाए तो विखंडित भारत एक और विभाजन के कगार पर खड़ा है। यदि हम इस विभाजन से बचना चाहते हैं तो हमें उन परिस्थितियों को जानना होगा जो 1946-47 के अखंड भारत में थीं ताकि हम आज उनसे शीघ्र सबक लेकर कुछ ऐसा प्रयास करें कि एक और विभाजन तथा रक्तरंजित दंगों से बच सकें।

हमें यह स्मरण रखना होगा कि जो राष्ट्र अपनी आपदाओं तथा त्रासदियों को इतिहास के अविस्मरणीय पृष्ठों में लिपिबद्ध करता है तथा एक संतत अविच्छिन्न परंपरा के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को संप्रेषित करता है, वही विपरीत परिस्थितियों में धैर्य व साहस का परिचय देते हुए विपत्ति से बाहर आने में सफल होता है। परंतु जो राष्ट्र अपने इतिहास को नकारता है उस राष्ट्र का विनाश एक ठंडी हवा के हल्के झोंके से भी हो सकता है।

कटु अनुभवों से लाभ न लेने वाला अथवा उन्हें नकारने वाला व्यक्ति कसाई की दुकान पर पंक्तिबद्ध खड़े हुए उन बकरों के मानिंद होता है जो कुछ समय पूर्व उसी के सम्मुख कत्ल किए जाने वाले अपने भाइयों की पीड़ा नहीं समझता तथा इसके विपरीत अपने पीछे वाले बकरे से घास के तिनकों के लिए खींचतान करता है। क्या आज भारतीयों की स्थिति इन बकरों जैसी नहीं है?

यह पुस्तक भारतीयों को इस बकरा वृत्ति से बाहर लाने तथा शत्रु बोध से परिचित करने के उद्देश्य की पूर्ति करती है। इतिहास हमारे कटु अनुभवों का लेखा जोखा होता है जो मातृभाषा में ही अधिक ग्राह्य होता है। इस दृष्टि से इस पुस्तक का अतिशय महत्व है। विभाजन की त्रासदी पर यह पहली अनूदित हिन्दी पुस्तक है। अतएव हर भारतीय को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए।

Product Details
ISBN 13 9798885752695
Book Language Hindi
Binding Paperback
Publishing Year 2025
Total Pages 400
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Category History   Indian History  
Weight 390.00 g
Dimension 15.24 x 23.00 x 2.50

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