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वैदिक युग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (एक ऐतिहासिक अध्ययन): Science and Technology in the Vedic Age (A Historical Study)
by   Jyoti (Author)  
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वैदिक युग में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (एक ऐतिहासिक अध्ययन): Science and Technology in the Vedic Age (A Historical Study)
Product Description
लेखक के बारे में

डॉ० ज्योति ने हाईस्कूल से लेकर एम.ए. तक परीक्षाएँ उच्च अंको से उत्तीर्ण की है। इन्होनें अपनी स्नातक तथा स्नातकोत्तर की शिक्षा तथा शोध की उपाधि प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्तव विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से प्राप्त की है। सुश्री ज्योति ने जुलाई 2016 में विश्वविद्यालय, अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा नेट उत्तीर्ण किया है। इन्होनें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली से जे.आर.एफ. उत्तीर्ण किया है। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी, वेबिनार एवं कार्यशालाओं में इन्होनें प्रतिभाग किया है एवं शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं। इनके कई शोधपत्रों एवं शोध परक अध्यायों का प्रकाशन स्तरीय जर्नल्स एवं सम्पादित पुस्तकों में हुआ हैं। वैदिक संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान तथा वैदिक प्रौद्योगिकी इनके शोध का विषय हैं। प्रस्तुत पुस्तक उपर्युक्त विशेषज्ञता की अभिव्यक्ति है।

प्रस्तावना

वेद भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्राण एवं अजय स्रोत है। भारतीय साहित्य का उदय जिस काल में हुआ उसे वैदिक काल की संज्ञा प्रदान की जाती है। इनमें निहित सामग्री बहुमुखी एवं बहुपयोगी है। वैदिक वांग्मय का विशालतम क्षेत्र अपनी परिधि में सहिताएँ, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक तथा उपनिषदों को समेटे हुए है। इनके अन्तर्गत धर्म, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, गणित, इतिहास, आयुर्विज्ञान, साहित्य, भाषा-विज्ञान, ब्रहा-विद्या इत्यादि अनेक विद्याओं के गूढ़ एवं अव्यक्त तथ्य प्राप्त होते हैं। वेदों के विषय में मनुस्मृति में सारगर्भित कथन कहा गया है- 'सर्वज्ञानगयो हि सः" अर्थात् वेद समस्त ज्ञान का भण्डार है। तपस्वी मनीषियों के अनाःकरण से गूढात्मक ज्ञान की जो क्रमिक धारा प्रवाहित हुयी, उसी को वेद कहा गया है।

भारतीय परम्परानुसार 'वेद' शब्द किसी एक ग्रन्थ का वाचक न होकर अलौकिक ज्ञान का वाचक है। 'वेद' शब्द ज्ञानार्थक विद् धातु से निष्पन्न होता है। वेदज्ञ की प्रशंसा करते हुए मनु कहते हैं कि- वेद शास्त्र के तत्व को जानने बाला व्यक्ति जिस किसी आश्रम में निवास करता हुआ कार्य का सम्पादन करता है वह इस लोक में रहते हुए भी ब्रहा का साक्षात्कार कर लेता है। वेदशास्त्रार्थतत्तवज्ञो यत्र कुत्राश्रमे वसन्। इहैव लोके तिष्ठन् स ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

वेदों के आम्नाय, आगम एवं श्रुति पर्याय है। वैदिक साहित्य को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से ऋषियों ने चार भागों में विभाजित किया है-

(1) संहिता ग्रन्थ (2) ब्राह्मण ग्रन्थ (3) आरण्यक ग्रन्थ (4) उपनिषद् ग्रन्थ।

वैदिक संहिताएँ चार हैं- (1) ऋग्वेद (2) यजुर्वेद (3) सामवेद एवं (4)

अथर्ववेद। इन संहिताओं के अपने-अपने ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् ग्रन्थ हैं। संहिता भाग में मन्त्रों का शुद्ध रूप है जो देवस्तुति तथा विभिन्न यज्ञों में विनियोगानुसार पठित है। ब्राहाण ग्रन्थों में मन्त्रों के विधि भाग की व्याख्या प्राप्त होती है। आरण्यक ग्रन्थों में उन विधियों एवं आचारों का विवेचन है जिसे मानव मात्र को वानप्रस्थ अवस्था में करना चाहिए। उपनिषद् ग्रन्थों में आध्यात्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन है। प्रारंभ में वेद राशि रूप था। व्यास जी ने उसके चार विभाग किए और अपने चार शिष्यों पिप्लाद, वैशम्पायन, जैमिनि और सुमन्तु को क्रमशः चार वेदों की शिक्षा प्रदान की, इसी कारण उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा।

वेद पौरुषेय हैं अथवा अपौरुषेय, इनका श्रवण ऋषियों द्वारा भारत में किया गया अथवा भारत के बाहर, इनको ऋषियों ने मूर्तस्वरूप में कब प्रदान किया इत्यादि विषयों में विभिन्न मत-मतान्तर हैं।' इस अध्ययन में इन विषयों पर मीमांसा करना आकांक्षित नहीं है। शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण के अनुसार वेदों के द्रष्टा ऋषियों ने अपने शिष्यों को वैदिक ऋचाओं का उपदेश संभवतः ईसा पूर्व 1500 से देना प्रारंभ किया। समस्त वैदिक ग्रंथो का रचनाकाल 1500 ईसा पूर्व से 600 ई०पू० के मध्य का माना जाता है।

Product Details
ISBN 13 9789381843536
Book Language Hindi
Binding Hardcover
Total Pages 350
Edition 2025
Publisher Swati Publications, Delhi
Author Jyoti
GAIN DU1327WPFU1
Product Dimensions 24 cm x 16.5 cm
Category Education, Science & Technology  
Weight 630.00 g

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लेखक के बारे में

डॉ० ज्योति ने हाईस्कूल से लेकर एम.ए. तक परीक्षाएँ उच्च अंको से उत्तीर्ण की है। इन्होनें अपनी स्नातक तथा स्नातकोत्तर की शिक्षा तथा शोध की उपाधि प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्तव विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से प्राप्त की है। सुश्री ज्योति ने जुलाई 2016 में विश्वविद्यालय, अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा नेट उत्तीर्ण किया है। इन्होनें भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली से जे.आर.एफ. उत्तीर्ण किया है। विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी, वेबिनार एवं कार्यशालाओं में इन्होनें प्रतिभाग किया है एवं शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं। इनके कई शोधपत्रों एवं शोध परक अध्यायों का प्रकाशन स्तरीय जर्नल्स एवं सम्पादित पुस्तकों में हुआ हैं। वैदिक संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान तथा वैदिक प्रौद्योगिकी इनके शोध का विषय हैं। प्रस्तुत पुस्तक उपर्युक्त विशेषज्ञता की अभिव्यक्ति है।

प्रस्तावना

वेद भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्राण एवं अजय स्रोत है। भारतीय साहित्य का उदय जिस काल में हुआ उसे वैदिक काल की संज्ञा प्रदान की जाती है। इनमें निहित सामग्री बहुमुखी एवं बहुपयोगी है। वैदिक वांग्मय का विशालतम क्षेत्र अपनी परिधि में सहिताएँ, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक तथा उपनिषदों को समेटे हुए है। इनके अन्तर्गत धर्म, दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, गणित, इतिहास, आयुर्विज्ञान, साहित्य, भाषा-विज्ञान, ब्रहा-विद्या इत्यादि अनेक विद्याओं के गूढ़ एवं अव्यक्त तथ्य प्राप्त होते हैं। वेदों के विषय में मनुस्मृति में सारगर्भित कथन कहा गया है- 'सर्वज्ञानगयो हि सः" अर्थात् वेद समस्त ज्ञान का भण्डार है। तपस्वी मनीषियों के अनाःकरण से गूढात्मक ज्ञान की जो क्रमिक धारा प्रवाहित हुयी, उसी को वेद कहा गया है।

भारतीय परम्परानुसार 'वेद' शब्द किसी एक ग्रन्थ का वाचक न होकर अलौकिक ज्ञान का वाचक है। 'वेद' शब्द ज्ञानार्थक विद् धातु से निष्पन्न होता है। वेदज्ञ की प्रशंसा करते हुए मनु कहते हैं कि- वेद शास्त्र के तत्व को जानने बाला व्यक्ति जिस किसी आश्रम में निवास करता हुआ कार्य का सम्पादन करता है वह इस लोक में रहते हुए भी ब्रहा का साक्षात्कार कर लेता है। वेदशास्त्रार्थतत्तवज्ञो यत्र कुत्राश्रमे वसन्। इहैव लोके तिष्ठन् स ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

वेदों के आम्नाय, आगम एवं श्रुति पर्याय है। वैदिक साहित्य को अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से ऋषियों ने चार भागों में विभाजित किया है-

(1) संहिता ग्रन्थ (2) ब्राह्मण ग्रन्थ (3) आरण्यक ग्रन्थ (4) उपनिषद् ग्रन्थ।

वैदिक संहिताएँ चार हैं- (1) ऋग्वेद (2) यजुर्वेद (3) सामवेद एवं (4)

अथर्ववेद। इन संहिताओं के अपने-अपने ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् ग्रन्थ हैं। संहिता भाग में मन्त्रों का शुद्ध रूप है जो देवस्तुति तथा विभिन्न यज्ञों में विनियोगानुसार पठित है। ब्राहाण ग्रन्थों में मन्त्रों के विधि भाग की व्याख्या प्राप्त होती है। आरण्यक ग्रन्थों में उन विधियों एवं आचारों का विवेचन है जिसे मानव मात्र को वानप्रस्थ अवस्था में करना चाहिए। उपनिषद् ग्रन्थों में आध्यात्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्त का प्रतिपादन है। प्रारंभ में वेद राशि रूप था। व्यास जी ने उसके चार विभाग किए और अपने चार शिष्यों पिप्लाद, वैशम्पायन, जैमिनि और सुमन्तु को क्रमशः चार वेदों की शिक्षा प्रदान की, इसी कारण उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा।

वेद पौरुषेय हैं अथवा अपौरुषेय, इनका श्रवण ऋषियों द्वारा भारत में किया गया अथवा भारत के बाहर, इनको ऋषियों ने मूर्तस्वरूप में कब प्रदान किया इत्यादि विषयों में विभिन्न मत-मतान्तर हैं।' इस अध्ययन में इन विषयों पर मीमांसा करना आकांक्षित नहीं है। शुद्ध ऐतिहासिक दृष्टिकोण के अनुसार वेदों के द्रष्टा ऋषियों ने अपने शिष्यों को वैदिक ऋचाओं का उपदेश संभवतः ईसा पूर्व 1500 से देना प्रारंभ किया। समस्त वैदिक ग्रंथो का रचनाकाल 1500 ईसा पूर्व से 600 ई०पू० के मध्य का माना जाता है।

Product Details
ISBN 13 9789381843536
Book Language Hindi
Binding Hardcover
Total Pages 350
Edition 2025
Publisher Swati Publications, Delhi
Author Jyoti
GAIN DU1327WPFU1
Product Dimensions 24 cm x 16.5 cm
Category Education, Science & Technology  
Weight 630.00 g

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