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US LADKI KA NAAM उस लड़की का नाम (कहानी संग्रह )
by   RAJ KAMAL (Author)  
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US LADKI KA NAAM
Product Description
अपनी रचनाओं के संदर्भ में स्वयं लेखक का कुछ कहना या लिखना कोई अररूरी नहीं है। मुझे नहीं लगता कोई लेखक अपनी रचनाओं में प्रतिबिंवित होने से बच पाता हो। प्रत्येक रचना में वैचारिकता के स्तर पर वह अंश अंश बंटा होता ही है। किसी विषय, वस्तुस्थिति या घटना को वह अपनी वैचारिकता के साथ ही पेश करता है। पुस्तक में भूमिका कथावस्तु के प्रति आकर्षण पैदा करने में सहायक तो हो सकती है। लेकिन वह पाठक को आग्रही भी बनाती है। और पाठकों तक पहुंचने से पहले ही वाद, वर्ग या पक्ष विशेष के लेबल से चिन्हित हो जाती है। इसलिए रचनाओं के बारे में कुछ लिखना ही है तो लेखक स्वयं लिखे। लेकिन मेरा मानना है कि अपनी रचनाओं के बारे में लेखक का लिखना या बोलना अतिरिक्त सतर्कता बरतना या सफाई देना जैसा होता है। जब तक बहुत आवश्यक न हो जाये, बचना ही बेहतर है। इससे रचना की गुणवत्ता या स्तरीयता में कोई अंतर नहीं पड़ता। वैसे भी रचना लेखक के लिये महासमुद्र से सीपियां तलाशने का काम है। और प्रत्येक लेखक अपनी अन्वेषण क्षमता तथा उपलब्ध सीपियों की विलक्ष्णता पर स्वयं मुग्ध रहता है। फिर भी उत्पादक अपनी वस्तु के गुणों का बखान करे तो उससे ग्राहक पर तात्कालिक प्रभाव तोपड़ता है, परंतु उपभोग के बाद वह निश्चित रूप से अपनी निजी राय कायम कर लेता हैं। सुधी पाठक भी रचना पढ़कर अपनी कसौटी पर परखता है, उसका मूल्यांकन करता है। एक सशक्त रचना अपना बचाव स्वयं करती है।
Product Details
ISBN 13 9788197016882
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 168
Author RAJ KAMAL
GAIN EO0XA6M42VO
Category Books   Fiction   Novel  
Weight 200.00 g

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अपनी रचनाओं के संदर्भ में स्वयं लेखक का कुछ कहना या लिखना कोई अररूरी नहीं है। मुझे नहीं लगता कोई लेखक अपनी रचनाओं में प्रतिबिंवित होने से बच पाता हो। प्रत्येक रचना में वैचारिकता के स्तर पर वह अंश अंश बंटा होता ही है। किसी विषय, वस्तुस्थिति या घटना को वह अपनी वैचारिकता के साथ ही पेश करता है। पुस्तक में भूमिका कथावस्तु के प्रति आकर्षण पैदा करने में सहायक तो हो सकती है। लेकिन वह पाठक को आग्रही भी बनाती है। और पाठकों तक पहुंचने से पहले ही वाद, वर्ग या पक्ष विशेष के लेबल से चिन्हित हो जाती है। इसलिए रचनाओं के बारे में कुछ लिखना ही है तो लेखक स्वयं लिखे। लेकिन मेरा मानना है कि अपनी रचनाओं के बारे में लेखक का लिखना या बोलना अतिरिक्त सतर्कता बरतना या सफाई देना जैसा होता है। जब तक बहुत आवश्यक न हो जाये, बचना ही बेहतर है। इससे रचना की गुणवत्ता या स्तरीयता में कोई अंतर नहीं पड़ता। वैसे भी रचना लेखक के लिये महासमुद्र से सीपियां तलाशने का काम है। और प्रत्येक लेखक अपनी अन्वेषण क्षमता तथा उपलब्ध सीपियों की विलक्ष्णता पर स्वयं मुग्ध रहता है। फिर भी उत्पादक अपनी वस्तु के गुणों का बखान करे तो उससे ग्राहक पर तात्कालिक प्रभाव तोपड़ता है, परंतु उपभोग के बाद वह निश्चित रूप से अपनी निजी राय कायम कर लेता हैं। सुधी पाठक भी रचना पढ़कर अपनी कसौटी पर परखता है, उसका मूल्यांकन करता है। एक सशक्त रचना अपना बचाव स्वयं करती है।
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ISBN 13 9788197016882
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 168
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