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MULYO KE MAMI मूल्यों की ममी

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सुरेश कांत हिंदी के सबसे अलग और उत्कृष्ट व्यंग्यकार हैं। विषयों का चयन, शिल्पगत वैविध्य और विशिष्ट भाषा-शैली उन्हें अन्य सभी व्यंग्यकारों से अलग करती है। बैंकिंग-जगत और उसके माध्यम से पूरे देश की व्यवस्थागत विसंगतियाँ उजागर करने वाली उनकी पहली ही औपन्यासिक कृति ‘ब से बैंक’ ने 1978 में उस समय की सबसे प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में धारावाहिक और 1980 में पुस्तक-रूप में छपकर धूम मचा दी थी। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी और नरेंद्र कोहली जैसे धुरंधर व्यंग्यकारों के पसंदीदा और श्रीलाल शुक्ल के ‘राग दरबारी’ के बाद सबसे बेहतर माने गए इस व्यंग्य-उपन्यास ने आगे चलकर कई व्यंग्यकारों के लिए उनके दूसरे व्यंग्य-उपन्यास ‘जॉब बची सो...’ को भी व्यंग्यकार-कथाकार नरेंद्र कोहली ने “अपनी तरह का पहला और अकेला” व्यंग्य-उपन्यास कहा, वरिष्ठतम व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने “राग दरबारी के बाद अब तक का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास” सुरेश कांत के ‘अफसर गए बिदेस’, ‘पड़ोसियों का दर्द’, ‘बलिहारी गुरु’, ‘गिद्ध’,अर्थसत्य’, ‘देसी मैनेजमेंट’, ‘चुनाव-मैदान में बंदूकसिंह’, ‘कुछ अलग’, ‘बॉस तुसी ग्रेट हो ‘मुल्ला तीन प्याजा’, ‘लेखक कीदाढ़ी में चमचा’, ‘सुरेश कांत : चयनित व्यंग्य-रचनाएँ’ और ‘मूल्यों की ममी’ जैसे व्यंग्य-संकलनों ने भी हिंदी-व्यंग्य में व्याप्त एकरसता तोड़ी और उसे एक नई ताजगी प्रदान की। ‘अर्थसत्य’, ‘बात तो चुभेगी’, ‘खरी-खरी’ और ‘कुछ अलग’ जैसे अपने नियमित दैनिक/साप्ताहिक व्यंग्य-कॉलमों द्वारा उन्होंने ‘कॉलम-लेखन’ को भी प्रतिष्ठा दिलवाई है। सुरेश कांत के व्यंग्य पढ़कर समकालीन इतिहास से बखूबी रूबरू हुआ जा सकता है और उनका यह व्यंग्य-संकलन इस बात का ज्वलंत प्रमाण है।
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सुरेश कांत हिंदी के सबसे अलग और उत्कृष्ट व्यंग्यकार हैं। विषयों का चयन, शिल्पगत वैविध्य और विशिष्ट भाषा-शैली उन्हें अन्य सभी व्यंग्यकारों से अलग करती है। बैंकिंग-जगत और उसके माध्यम से पूरे देश की व्यवस्थागत विसंगतियाँ उजागर करने वाली उनकी पहली ही औपन्यासिक कृति ‘ब से बैंक’ ने 1978 में उस समय की सबसे प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में धारावाहिक और 1980 में पुस्तक-रूप में छपकर धूम मचा दी थी। हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी और नरेंद्र कोहली जैसे धुरंधर व्यंग्यकारों के पसंदीदा और श्रीलाल शुक्ल के ‘राग दरबारी’ के बाद सबसे बेहतर माने गए इस व्यंग्य-उपन्यास ने आगे चलकर कई व्यंग्यकारों के लिए उनके दूसरे व्यंग्य-उपन्यास ‘जॉब बची सो...’ को भी व्यंग्यकार-कथाकार नरेंद्र कोहली ने “अपनी तरह का पहला और अकेला” व्यंग्य-उपन्यास कहा, वरिष्ठतम व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी ने “राग दरबारी के बाद अब तक का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास” सुरेश कांत के ‘अफसर गए बिदेस’, ‘पड़ोसियों का दर्द’, ‘बलिहारी गुरु’, ‘गिद्ध’,अर्थसत्य’, ‘देसी मैनेजमेंट’, ‘चुनाव-मैदान में बंदूकसिंह’, ‘कुछ अलग’, ‘बॉस तुसी ग्रेट हो ‘मुल्ला तीन प्याजा’, ‘लेखक कीदाढ़ी में चमचा’, ‘सुरेश कांत : चयनित व्यंग्य-रचनाएँ’ और ‘मूल्यों की ममी’ जैसे व्यंग्य-संकलनों ने भी हिंदी-व्यंग्य में व्याप्त एकरसता तोड़ी और उसे एक नई ताजगी प्रदान की। ‘अर्थसत्य’, ‘बात तो चुभेगी’, ‘खरी-खरी’ और ‘कुछ अलग’ जैसे अपने नियमित दैनिक/साप्ताहिक व्यंग्य-कॉलमों द्वारा उन्होंने ‘कॉलम-लेखन’ को भी प्रतिष्ठा दिलवाई है। सुरेश कांत के व्यंग्य पढ़कर समकालीन इतिहास से बखूबी रूबरू हुआ जा सकता है और उनका यह व्यंग्य-संकलन इस बात का ज्वलंत प्रमाण है।
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