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LAGHUKATHA VRITANT लघुकथा वृतांत (लघुकथा के विविध पक्षों का विशद विवेचन )
by   SURYAKANT NAGAR (Author)  
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LAGHUKATHA VRITANT
Product Description
रफ़्ता-रफ़्ता ही सही, लघुकथा ने आज हिंदी साहित्य में मुक्रम्मल मुक्राम हासिल कर लिया है। न केवल लघुकथाएँ बड़ी संख्या में लिखी जा रही हैं बल्कि उसके सिद्धांत और सौंदर्य-शास्त्र पर भी काम हो रहा है। हाँ, विधा को गंभीरता से न लेनेवालों की वजह से विधा का चेहरा विरूपित लग सकता है। ऐसे में यदि श्रेष्ठ, प्रभावी लघुकथाएँ लिखी जाती रहेंगी तो कचरा स्वतः ही छँट जाएगा। लंबे समय से विधा से जुड़ाव के कारण लघुकथा में क्रमशः आए बदलावों का साक्षी रहा हूँ कि कैसे मिथकीय, पौराणिक और बोध कथाओं से निकलकर लघुकथा ने स्वयं को समकाल और युगीन यथार्थ से जोड़ा। चरित्र की भीतरी परत को तलाशकर उसे कथा में उतारा। प्रयोग जारी हैं। परंपरा और प्रगति के बीच प्रयोगात्मकता महत्त्वपूर्ण कड़ी है। खिलौने टूटेंगे नहीं तो नए कैसे बनेंगे? प्रयोगात्मकता तो रचनात्मकता का ही एक रूप है। नवोन्मेषी साहित्य-सृजन आवश्यक है। कब तक पुरानी बातों को दोहराते रहेंगे! लघुकथा में हमें पूरी कहानी का एहसास होना चाहिए। लघुकथा घटना में नहीं, उसमें मौजूद विचार और अन्तर्विरोध में होती है। वह स्लाइस ऑफ़ लाइफ़ है। एक अंश में पूरा जीवन समाहित है। ख़तरा उन बंधुओं से है जो लघुका को चाबी वाला खिलौना मानते हैं कि चाबी घुमाई और दौड़ पड़ेगा। दरअसल लघुकथा लेखन दुरूह और चुनौतीपूर्ण कार्य है। गागर में सागर भरने जैसा। पर सागर में विषैले सर्प, बिच्छू, मगरमच्छ, मछलियाँ और रत्न भी होते हैं। अतः भरते समय ध्यान रखें कि जल के साथ केवल रत्न (सीप) ही आएँ। यह भी कि गागर इतनी न भर जाए कि वज़न न सँभाल सके। इधर लोग ऐप, इंस्टाग्राम, द्विटर, ब्लॉग पर नित एक लघुकथा डालकर परस्पर प्रशंसा के पुल बाँधते हैं।
Product Details
ISBN 13 9788119206506
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 120
Author SURYAKANT NAGAR
GAIN 9DJLZEC8RJL
Category Books   Fiction   Poetry  
Weight 180.00 g

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रफ़्ता-रफ़्ता ही सही, लघुकथा ने आज हिंदी साहित्य में मुक्रम्मल मुक्राम हासिल कर लिया है। न केवल लघुकथाएँ बड़ी संख्या में लिखी जा रही हैं बल्कि उसके सिद्धांत और सौंदर्य-शास्त्र पर भी काम हो रहा है। हाँ, विधा को गंभीरता से न लेनेवालों की वजह से विधा का चेहरा विरूपित लग सकता है। ऐसे में यदि श्रेष्ठ, प्रभावी लघुकथाएँ लिखी जाती रहेंगी तो कचरा स्वतः ही छँट जाएगा। लंबे समय से विधा से जुड़ाव के कारण लघुकथा में क्रमशः आए बदलावों का साक्षी रहा हूँ कि कैसे मिथकीय, पौराणिक और बोध कथाओं से निकलकर लघुकथा ने स्वयं को समकाल और युगीन यथार्थ से जोड़ा। चरित्र की भीतरी परत को तलाशकर उसे कथा में उतारा। प्रयोग जारी हैं। परंपरा और प्रगति के बीच प्रयोगात्मकता महत्त्वपूर्ण कड़ी है। खिलौने टूटेंगे नहीं तो नए कैसे बनेंगे? प्रयोगात्मकता तो रचनात्मकता का ही एक रूप है। नवोन्मेषी साहित्य-सृजन आवश्यक है। कब तक पुरानी बातों को दोहराते रहेंगे! लघुकथा में हमें पूरी कहानी का एहसास होना चाहिए। लघुकथा घटना में नहीं, उसमें मौजूद विचार और अन्तर्विरोध में होती है। वह स्लाइस ऑफ़ लाइफ़ है। एक अंश में पूरा जीवन समाहित है। ख़तरा उन बंधुओं से है जो लघुका को चाबी वाला खिलौना मानते हैं कि चाबी घुमाई और दौड़ पड़ेगा। दरअसल लघुकथा लेखन दुरूह और चुनौतीपूर्ण कार्य है। गागर में सागर भरने जैसा। पर सागर में विषैले सर्प, बिच्छू, मगरमच्छ, मछलियाँ और रत्न भी होते हैं। अतः भरते समय ध्यान रखें कि जल के साथ केवल रत्न (सीप) ही आएँ। यह भी कि गागर इतनी न भर जाए कि वज़न न सँभाल सके। इधर लोग ऐप, इंस्टाग्राम, द्विटर, ब्लॉग पर नित एक लघुकथा डालकर परस्पर प्रशंसा के पुल बाँधते हैं।
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ISBN 13 9788119206506
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Binding Paperback
Total Pages 120
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