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Kuch yun bole ahsas
Kuch yun bole ahsas
Product Description
हम भले ही फेसबुक को आभासी दुनिया कह कर इसके वजूद को कमतर आंकने की कोशिश करें पर इस तथ्य को अस्वीकार करना मुश्किल होगा कि आज यह हमारी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन चुका है।इंसान फितरतन संवेदनशील होता है और उसकी यही फितरत उसे अपने मनोभावों को शब्दों में अभिव्यक्त करने की क्षमता प्रदान करती है। अक्सर हमारे अन्दर कई तरह के भाव आते हैं और उन्हें शब्द देना भी चाहते हैं, पर हम यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि इन भावों को पढ़ेगा कौन? जाहिर सी बात है कि यदि आप कुछ लिखना चाहते हैं तो पाठक तो होने ही चाहिए, उन्हें पढ़ने और उनका मूल्यांकन करने के लिए। यकीनन, ऐसे कलमकारों के लिए "फेसबुक” ने स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है।यहाँ आपका अपना पटल है, जो चाहे लिखें, जब चाहे लिखें, न कोई संपादक, न कोई प्रकाशक, बस आप ही सर्वेसर्वा हैं। बेशक, ऐसे में लेखनी ज़रूर चलनी चाहिए और खूब चलती भी है। इसका उदाहरण है फेसबुक के सैंकड़ों पटल जहाँ पोस्ट करने का सिलसिला नियमित रूप से चलता रहता है।पर यह बात यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि आज फेसबुक पर ऐसे कई समूह सक्रिय दिखते हैं जो अपने सदस्यों की रचनाधर्मिता को प्रोत्साहित करने के लिए एक सार्थक प्लेटफार्म प्रदान कर रहे हैं। इन समूहों में साहित्य की विभिन्न विधाओं से जुड़ी तरह-तरह की गतिविधियाँ चलती रहती हैं।
Product Details
ISBN 13 9789385083822
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 192
Author Suresh Saraswat, Rajesh Kumar Sinha
Editor 2017
GAIN T9J96MKEB1B
Category Books   Fiction   Poetry  
Weight 150.00 g

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हम भले ही फेसबुक को आभासी दुनिया कह कर इसके वजूद को कमतर आंकने की कोशिश करें पर इस तथ्य को अस्वीकार करना मुश्किल होगा कि आज यह हमारी ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन चुका है।इंसान फितरतन संवेदनशील होता है और उसकी यही फितरत उसे अपने मनोभावों को शब्दों में अभिव्यक्त करने की क्षमता प्रदान करती है। अक्सर हमारे अन्दर कई तरह के भाव आते हैं और उन्हें शब्द देना भी चाहते हैं, पर हम यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि इन भावों को पढ़ेगा कौन? जाहिर सी बात है कि यदि आप कुछ लिखना चाहते हैं तो पाठक तो होने ही चाहिए, उन्हें पढ़ने और उनका मूल्यांकन करने के लिए। यकीनन, ऐसे कलमकारों के लिए "फेसबुक” ने स्वर्णिम अवसर प्रदान किया है।यहाँ आपका अपना पटल है, जो चाहे लिखें, जब चाहे लिखें, न कोई संपादक, न कोई प्रकाशक, बस आप ही सर्वेसर्वा हैं। बेशक, ऐसे में लेखनी ज़रूर चलनी चाहिए और खूब चलती भी है। इसका उदाहरण है फेसबुक के सैंकड़ों पटल जहाँ पोस्ट करने का सिलसिला नियमित रूप से चलता रहता है।पर यह बात यहीं खत्म नहीं होती, बल्कि आज फेसबुक पर ऐसे कई समूह सक्रिय दिखते हैं जो अपने सदस्यों की रचनाधर्मिता को प्रोत्साहित करने के लिए एक सार्थक प्लेटफार्म प्रदान कर रहे हैं। इन समूहों में साहित्य की विभिन्न विधाओं से जुड़ी तरह-तरह की गतिविधियाँ चलती रहती हैं।
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ISBN 13 9789385083822
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 192
Author Suresh Saraswat, Rajesh Kumar Sinha
Editor 2017
GAIN T9J96MKEB1B
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