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-:किताब के बारे में:-
वैदिक साहित्य के निचोड़ उपनिषदों में बृहदारण्यकोपनिषद् सार एक मुख्य उपनिषद् है। सभी उपनिषदों में आकार की दृष्टि से बृहत् होने और अरण्य अर्थात वन में अध्ययन किए जाने के कारण इसे बृहदारण्यकोपनिषद् कहा गया है। इस उपनिषद् में सृष्टिरूप यड़ा को अश्वमेघ के विराट अश्व के रूप में निरुपित किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, प्राण की महिमा, ब्रह्म की सर्वरूपता आदि इस उपनिषद् की विषय वस्तु है। बहुचर्चित मन्त्र 'असतो मा सद्रमय, 'तमसो मा ज्योतिर्गमय,' और 'मृत्योर्मामृतं गमय' इसी उपनिषद् की देन हैं।
ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्रेयि के प्रसिद्द संवाद के द्वारा ब्रह्म और आत्मा का अभेद और इसके साथ ही इस उपनिषद् में मधुविद्या और उसकी परम्परा का भी प्रतिपादन किया गया है। मधु-अर्थात कार्य; जिस प्रकार अनेक मधुकरों द्वारा एक मधु का छत्ता तैयार किया हुआ होता है वैसे ही पञ्चमहाभूत, सूर्य, चन्द्र आदि भूतों के और भूत उनके कार्य हैं।
इसी उपनिषद् में विदेहराज जनक की सभा में उपस्थित अन्य विद्वानों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तरों के माध्यम से ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा ब्रह्मज्ञान का प्रतिपादन किया गया है। देवताओं की संख्या की प्रचलित मान्यता 33 करोड़ के स्थान पर इस उपनिषदों देवताओं की संख्या मुख्यतः तैतीस बताई गई है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य सामान्य जनों को सीधी-सरल-सरस भाषा में इस उपनिषद् में निहित अमूल्य ज्ञान से परिचित कराना मात्र है। पाठ्य को सुरुचिपूर्ण और उसकी निरंतरता और तारतम्यता बनाए रखने के लिए मूल मन्त्रों का शब्दतः अनुवाद न कर उनके भाव को ग्रहण करने का प्रयास किया गया है।
सेवानिवृत IRS अधिकारी, राजेन्द्र कुमार गुप्ता, परमसंत ठाकुर श्रीरामसिंहजी और उनकी आध्यात्मिक परम्परा के अनुयायी हैं। श्रीमद्भगवद्गीता, बाइबल, कुरआन, रामायण, श्रीकृष्णचरितामृत आदि की सरल काव्यात्मक पदों में प्रस्तुति और सूफिज्म पर पुस्तकें प्रकाशित करा वे लोगों की धर्म व आध्यात्मिकता के विभिन्न पक्षों में रुचि जाग्रत करने के कार्य में निरन्तर प्रयासरत हैं।
ISBN 13 | 9798885752398 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2025 |
Total Pages | 148 |
Edition | First |
GAIN | GM52FOHAOXV |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Religious Studies Religion & Spirituality |
Weight | 200.00 g |
Dimension | 15.50 x 23.00 x 1.50 |
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-:किताब के बारे में:-
वैदिक साहित्य के निचोड़ उपनिषदों में बृहदारण्यकोपनिषद् सार एक मुख्य उपनिषद् है। सभी उपनिषदों में आकार की दृष्टि से बृहत् होने और अरण्य अर्थात वन में अध्ययन किए जाने के कारण इसे बृहदारण्यकोपनिषद् कहा गया है। इस उपनिषद् में सृष्टिरूप यड़ा को अश्वमेघ के विराट अश्व के रूप में निरुपित किया गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, प्राण की महिमा, ब्रह्म की सर्वरूपता आदि इस उपनिषद् की विषय वस्तु है। बहुचर्चित मन्त्र 'असतो मा सद्रमय, 'तमसो मा ज्योतिर्गमय,' और 'मृत्योर्मामृतं गमय' इसी उपनिषद् की देन हैं।
ऋषि याज्ञवल्क्य और मैत्रेयि के प्रसिद्द संवाद के द्वारा ब्रह्म और आत्मा का अभेद और इसके साथ ही इस उपनिषद् में मधुविद्या और उसकी परम्परा का भी प्रतिपादन किया गया है। मधु-अर्थात कार्य; जिस प्रकार अनेक मधुकरों द्वारा एक मधु का छत्ता तैयार किया हुआ होता है वैसे ही पञ्चमहाभूत, सूर्य, चन्द्र आदि भूतों के और भूत उनके कार्य हैं।
इसी उपनिषद् में विदेहराज जनक की सभा में उपस्थित अन्य विद्वानों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तरों के माध्यम से ऋषि याज्ञवल्क्य द्वारा ब्रह्मज्ञान का प्रतिपादन किया गया है। देवताओं की संख्या की प्रचलित मान्यता 33 करोड़ के स्थान पर इस उपनिषदों देवताओं की संख्या मुख्यतः तैतीस बताई गई है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य सामान्य जनों को सीधी-सरल-सरस भाषा में इस उपनिषद् में निहित अमूल्य ज्ञान से परिचित कराना मात्र है। पाठ्य को सुरुचिपूर्ण और उसकी निरंतरता और तारतम्यता बनाए रखने के लिए मूल मन्त्रों का शब्दतः अनुवाद न कर उनके भाव को ग्रहण करने का प्रयास किया गया है।
सेवानिवृत IRS अधिकारी, राजेन्द्र कुमार गुप्ता, परमसंत ठाकुर श्रीरामसिंहजी और उनकी आध्यात्मिक परम्परा के अनुयायी हैं। श्रीमद्भगवद्गीता, बाइबल, कुरआन, रामायण, श्रीकृष्णचरितामृत आदि की सरल काव्यात्मक पदों में प्रस्तुति और सूफिज्म पर पुस्तकें प्रकाशित करा वे लोगों की धर्म व आध्यात्मिकता के विभिन्न पक्षों में रुचि जाग्रत करने के कार्य में निरन्तर प्रयासरत हैं।
ISBN 13 | 9798885752398 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2025 |
Total Pages | 148 |
Edition | First |
GAIN | GM52FOHAOXV |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Religious Studies Religion & Spirituality |
Weight | 200.00 g |
Dimension | 15.50 x 23.00 x 1.50 |
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Garuda Prakashan
₹249.00

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