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BATOLEBAAZ

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बतोलेबाज़, मुख्य रूप से चटपटे संवादों के माध्यम से बुनी गई व्यंग्यप्रधान रचनाओं की एक अनूठी कथा शैली की किताब है। जो अपने शब्द चातुर्य और दोहरे अर्थों से कभी अवाक कर देती है तो कभी ठहाके लगाने पर मजबूर कर देती है। हास्य-व्यंग्य से भरपूर 13 कहानियों का यह संग्रह पाठकों को कहानियों के माध्यम से ऐसी यात्रा पर ले जाने में सक्षम है जो न केवल मनोरंजक हैं बल्कि विचारोत्तेजक भी हैं। इसी संग्रह की एक रचना "लानत है" पुलिस विभाग के भीतर व्यवस्थित भ्रष्टाचार पर एक तीखी टिप्पणी है। जो जितनी तीखी है उतनी ही मनोरंजक भी है। इसी तरह "गुनाह कुबूल है" एक ऐसी कहानी है जिसमें गुनाह कुबूल करने वाले के साथ चर्च का पुजारी भी अपने स्वयं के बनाए जाल में उलझ जाता है और खुद कन्फेस करने लगता है। "दुख भरे दिन...," "उसकी बीवी...," "इक चतुर नार," "भोगी का क्या भोगना," या फिर "यार ने ही लूट लिया..." कुछ ऐसी कहानियाँ हैं जो अपने पात्रों और संवादों से व्यंग्य के सार को खोए बिना हास्य विनोद उत्पन्न करती हैं। "बतोलेबाज़" कमजोर दिल वाले, मीनमेख निकालने वाले या आदर्श साहित्य के मानक तय करने वाले लोगों के लिए नहीं है। राजीव तनेजा का हास्य और उनकी ाषा, हालांकि कलात्मक रूप से नियोजित है, फिर भी अपने पाठकों से एक निश्चित परिपक्वता की मांग करती है। यह मनोरंजन और आत्मनिरीक्षण के बीच एक खूबसूरत संतुलन की यात्रा है, और जो लोग इस बारीक रेखा पर चलने के इच्छुक हैं उन्हीं का राजीव तनेजा के लेखन की दुनिया में स्वागत है।
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बतोलेबाज़, मुख्य रूप से चटपटे संवादों के माध्यम से बुनी गई व्यंग्यप्रधान रचनाओं की एक अनूठी कथा शैली की किताब है। जो अपने शब्द चातुर्य और दोहरे अर्थों से कभी अवाक कर देती है तो कभी ठहाके लगाने पर मजबूर कर देती है। हास्य-व्यंग्य से भरपूर 13 कहानियों का यह संग्रह पाठकों को कहानियों के माध्यम से ऐसी यात्रा पर ले जाने में सक्षम है जो न केवल मनोरंजक हैं बल्कि विचारोत्तेजक भी हैं। इसी संग्रह की एक रचना "लानत है" पुलिस विभाग के भीतर व्यवस्थित भ्रष्टाचार पर एक तीखी टिप्पणी है। जो जितनी तीखी है उतनी ही मनोरंजक भी है। इसी तरह "गुनाह कुबूल है" एक ऐसी कहानी है जिसमें गुनाह कुबूल करने वाले के साथ चर्च का पुजारी भी अपने स्वयं के बनाए जाल में उलझ जाता है और खुद कन्फेस करने लगता है। "दुख भरे दिन...," "उसकी बीवी...," "इक चतुर नार," "भोगी का क्या भोगना," या फिर "यार ने ही लूट लिया..." कुछ ऐसी कहानियाँ हैं जो अपने पात्रों और संवादों से व्यंग्य के सार को खोए बिना हास्य विनोद उत्पन्न करती हैं। "बतोलेबाज़" कमजोर दिल वाले, मीनमेख निकालने वाले या आदर्श साहित्य के मानक तय करने वाले लोगों के लिए नहीं है। राजीव तनेजा का हास्य और उनकी ाषा, हालांकि कलात्मक रूप से नियोजित है, फिर भी अपने पाठकों से एक निश्चित परिपक्वता की मांग करती है। यह मनोरंजन और आत्मनिरीक्षण के बीच एक खूबसूरत संतुलन की यात्रा है, और जो लोग इस बारीक रेखा पर चलने के इच्छुक हैं उन्हीं का राजीव तनेजा के लेखन की दुनिया में स्वागत है।
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