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Aparajit yoddha
Aparajit yoddha
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भारतीय परम्परा में “वसुधैव कुटुम्बकम" की उच्च विचारधारा रही है पर व्यवहारिक रूप में समाज के एक वर्ग को हम कुएँ से पानी तक नहीं लेने देते रहे क्योंकि छूने मात्र से वह कुआँ ही अपवित्र हो जाता है। मानवता को शर्मसार करने वाली यह वेदना महान लेखक एवं समाज सुधारक प्रेमचन्द की रचना "ठाकुर का कुआँ" में झलकता है।भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था जाति पाति, ऊँच नीच, आपसी फूट और शासकों के दम्भ से जनित अकारण युद्धों के कारण हमेशा विभाजित रहा। गिनती के विदेशी आक्रमणकारियों के सामने बहुसंख्यक हिन्दू घुटने टेकते रहे। आज भी वे पुरानी सामाजिक बुराइयाँ मौजूद हैं। जाति के आधार पर न कोई श्रेष्ठ होता है और न कोई नीच। मनुष्य मात्र अपने अच्छे कर्मों से ही श्रेष्ठ बनता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आज का प्रबुद्ध और शिक्षित भारतीय इन बातों पर मनन करके एक स्वस्थ समाज की स्थापना करेगा।बहुत दुख होता है जब "भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह" का नारा लगता है और इस विचार धारा को देश के नेता और कुछ विघटनकारी शक्तियाँ समर्थन करें, इससे बड़ी शर्मनाक बात हो ही नहीं सकती। देश का संविधान भारत की एक-एक इंच भूमि की रक्षा का वचन देता हैो हमारी भूमि के टुकड़े करे या करने की बात करे तो उससे बड़ा देश द्रोही कौन होगा? बोलने की आजादी का मतलब कतई नहीं होता कि बाकी राष्ट्रवादी भारतीयों की भावना को ठेस पहुँचायें। देश को पता है कि चीन और पाकिस्तान की धुरी भारत के हितों के विरूद्ध घनघोर प्रयास कर इस देश को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।
Product Details
ISBN 13 9789388278508
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 262
Author Gopal krishnan
Editor 2019
GAIN OL56LGZ3H9K
Category Books   Fiction   Novel  
Weight 100.00 g

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Product Description
भारतीय परम्परा में “वसुधैव कुटुम्बकम" की उच्च विचारधारा रही है पर व्यवहारिक रूप में समाज के एक वर्ग को हम कुएँ से पानी तक नहीं लेने देते रहे क्योंकि छूने मात्र से वह कुआँ ही अपवित्र हो जाता है। मानवता को शर्मसार करने वाली यह वेदना महान लेखक एवं समाज सुधारक प्रेमचन्द की रचना "ठाकुर का कुआँ" में झलकता है।भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था जाति पाति, ऊँच नीच, आपसी फूट और शासकों के दम्भ से जनित अकारण युद्धों के कारण हमेशा विभाजित रहा। गिनती के विदेशी आक्रमणकारियों के सामने बहुसंख्यक हिन्दू घुटने टेकते रहे। आज भी वे पुरानी सामाजिक बुराइयाँ मौजूद हैं। जाति के आधार पर न कोई श्रेष्ठ होता है और न कोई नीच। मनुष्य मात्र अपने अच्छे कर्मों से ही श्रेष्ठ बनता है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि आज का प्रबुद्ध और शिक्षित भारतीय इन बातों पर मनन करके एक स्वस्थ समाज की स्थापना करेगा।बहुत दुख होता है जब "भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह" का नारा लगता है और इस विचार धारा को देश के नेता और कुछ विघटनकारी शक्तियाँ समर्थन करें, इससे बड़ी शर्मनाक बात हो ही नहीं सकती। देश का संविधान भारत की एक-एक इंच भूमि की रक्षा का वचन देता हैो हमारी भूमि के टुकड़े करे या करने की बात करे तो उससे बड़ा देश द्रोही कौन होगा? बोलने की आजादी का मतलब कतई नहीं होता कि बाकी राष्ट्रवादी भारतीयों की भावना को ठेस पहुँचायें। देश को पता है कि चीन और पाकिस्तान की धुरी भारत के हितों के विरूद्ध घनघोर प्रयास कर इस देश को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।
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ISBN 13 9789388278508
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