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Anugunj
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हवा में फड़फड़ाते हैं पन्ने. दूर तक खुलते चले जाते हैं. वेदनाओं और प्रताड़नाओं का लंबा इतिहास बना एक हिस्सा. कुछ भोगा हुआ, कुछ ओटा हुआ, बाक़ी कुछ नहीं. समय ने सुख को हमेशा क्षणिक सिद्ध करने में कसर नहीं रखी. सहज ही अपनाया बचे हुए भाग्य को. अपने में जी कर. अपार पीड़ा के साथ मित्रवत्. किंतु जीवन का अर्थ तलाशने की साध अवचेतन को सालती रही.याद आता है एक टूटा सितारा. अपनी अनपेक्षित चमक दिखाकर अकस्मात् लुप्त हुआ. जब चमक के माने मालूम भी नहीं थे. जानने की उत्कंठा भी नहीं थी. मगर वक़्त से ठन गई. अनजाने ही वियोगी मानकर. हैरत भरी तब्दीली का लंबा सफ़र. फिर कभी नहीं देखा मुड़कर किसी चमक को. बस उठते रहे 'क्या' और 'क्यों' सरीखे मासूम सवाल. बदल गया सब कुछ. अजब सी दास्तान.पर होनी को शायद पसंद नहीं आया ये अंजाम. भाग्य का ये फ़ैसला उसने नामंजूर कर दिया. अपनी भूल को सुधारा-चमक के सही माने समझाने के लिए. कुछ देर से सही. एक अरसा निकाल दिया तय करने में कि वक़्त से ठाने रखूं या भूल जाऊँ एक जन्म. इतना भर सोचने का समय भी नहीं दिया कि वक़्त ने अपने तमाम गुनाहों की माफ़ी मांग ली. वक़्त ! इसी पन्ने पर तुमसे फिर मिलूंगा-नए उजाले में. सच्ई और विश्वास के अभिन्न तादात्म्य के साथ.बस, इसी की अनंत अनुगूँज बसी है इन अनुभूतियों में.
Product Details
ISBN 13 9789386498588
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 190
Author PRADEEP KUMAR AGARWAL PRADEEPT
Editor 2018
GAIN KOCBXSJZEYU
Category Books   Fiction   Poetry  
Weight 200.00 g

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हवा में फड़फड़ाते हैं पन्ने. दूर तक खुलते चले जाते हैं. वेदनाओं और प्रताड़नाओं का लंबा इतिहास बना एक हिस्सा. कुछ भोगा हुआ, कुछ ओटा हुआ, बाक़ी कुछ नहीं. समय ने सुख को हमेशा क्षणिक सिद्ध करने में कसर नहीं रखी. सहज ही अपनाया बचे हुए भाग्य को. अपने में जी कर. अपार पीड़ा के साथ मित्रवत्. किंतु जीवन का अर्थ तलाशने की साध अवचेतन को सालती रही.याद आता है एक टूटा सितारा. अपनी अनपेक्षित चमक दिखाकर अकस्मात् लुप्त हुआ. जब चमक के माने मालूम भी नहीं थे. जानने की उत्कंठा भी नहीं थी. मगर वक़्त से ठन गई. अनजाने ही वियोगी मानकर. हैरत भरी तब्दीली का लंबा सफ़र. फिर कभी नहीं देखा मुड़कर किसी चमक को. बस उठते रहे 'क्या' और 'क्यों' सरीखे मासूम सवाल. बदल गया सब कुछ. अजब सी दास्तान.पर होनी को शायद पसंद नहीं आया ये अंजाम. भाग्य का ये फ़ैसला उसने नामंजूर कर दिया. अपनी भूल को सुधारा-चमक के सही माने समझाने के लिए. कुछ देर से सही. एक अरसा निकाल दिया तय करने में कि वक़्त से ठाने रखूं या भूल जाऊँ एक जन्म. इतना भर सोचने का समय भी नहीं दिया कि वक़्त ने अपने तमाम गुनाहों की माफ़ी मांग ली. वक़्त ! इसी पन्ने पर तुमसे फिर मिलूंगा-नए उजाले में. सच्ई और विश्वास के अभिन्न तादात्म्य के साथ.बस, इसी की अनंत अनुगूँज बसी है इन अनुभूतियों में.
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ISBN 13 9789386498588
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Binding Paperback
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