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Advait man
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अद्वैत माने एक, जैसे कि आप और मैं. आप यानि मेरे पाठक, प्रशंसक,मेरे आत्मीय और मेरे स्नेही स्वजन. हमारे मन द्वैत कहाँ, अद्वैत ही तो हैं. मेरे शब्दों से यदि आपको अपने मन की बात महसूस हो और आपके मन की बातों को यदि मैं शब्द दूं तो यही है “अद्वैत मन” यानि एकात्म. मेरी रचनाओं का ये पांचवां संकलन केवल कविताओं का है जिसमें आपके और मेरे मन की सामान्य सोचों के ही भावहैं, और कुछ नहीं.इनमें से बहुत सी कविताएं मैने फ़ेसबुक पर भी पोस्ट की हैं जिन्हें आपकी सराहना मिली है. आप सबका प्यार और प्रशंसा दोनों ही मेरे संबल हैं. इस संकलन के पश्चात अब मुझे कहानियों पर भी विशेष ध्यान देना है. मन में इतनी कहानियां चलती रहती हैं कि उन्हें मूर्त रूप देना अब मेरा अगला लक्ष्य है. आशा है कि आप सभी का अमूल्य प्रोत्साहन मुझे सदैव मिलता रहेगा. “अद्वैत मन” संकलन में मेरे और आपके मन के वो अछूते भाव संकलित हैं जो हमारे मन के आसपास हमेशा घुमड़ते रहते हैं. इन्हें जब पढ़ेंगे तो आपको भी ऐसा ही लगेगा.पिछले “अनुरागी मन” संकलन में ‘चांद और जुगनू’ की जो श्रृंखला लिखी थी, उसी की तर्ज पर मैंने इस संकलन में ‘गुल और बुलबुल’ की श्रृंखला भी रखी है. ‘गुल और बुलमन के वो भाव हैं जिनका उद्गम भले ही मुझसे हुआ हो पर ये विलीन आप सभी के मन में जाकर ही होते हैं. पिछले ‘अनुरागी मन’ संकलन में 10 कहानियां शामिल होने के कारण मेरे इस नए संकलन के लिए स्वतः ही काफ़ी रचनाएं शेष रहकर संकलित हो गईं, इसी कारण ये संकलन भी शीघ्र ही आप सबके समक्ष प्रस्तुत हो गया. आशा है कि आप इस संकलन को भी अन्य संकलनों की भांति ही अपना स्नेह और आत्मीयता प्रदान करेंगेः-“बरसों बरस लग जाते हैं कभी एक शब्द कहने में कभी एक शब्द से ही कई छंद रचते चले जाते हैं”
Product Details
ISBN 13 9789386498694
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 192
Author ARCHANA BHARDWAJ
Editor 2018
GAIN 3AIRUCORCH1
Category Books   Fiction   Poetry  
Weight 200.00 g

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अद्वैत माने एक, जैसे कि आप और मैं. आप यानि मेरे पाठक, प्रशंसक,मेरे आत्मीय और मेरे स्नेही स्वजन. हमारे मन द्वैत कहाँ, अद्वैत ही तो हैं. मेरे शब्दों से यदि आपको अपने मन की बात महसूस हो और आपके मन की बातों को यदि मैं शब्द दूं तो यही है “अद्वैत मन” यानि एकात्म. मेरी रचनाओं का ये पांचवां संकलन केवल कविताओं का है जिसमें आपके और मेरे मन की सामान्य सोचों के ही भावहैं, और कुछ नहीं.इनमें से बहुत सी कविताएं मैने फ़ेसबुक पर भी पोस्ट की हैं जिन्हें आपकी सराहना मिली है. आप सबका प्यार और प्रशंसा दोनों ही मेरे संबल हैं. इस संकलन के पश्चात अब मुझे कहानियों पर भी विशेष ध्यान देना है. मन में इतनी कहानियां चलती रहती हैं कि उन्हें मूर्त रूप देना अब मेरा अगला लक्ष्य है. आशा है कि आप सभी का अमूल्य प्रोत्साहन मुझे सदैव मिलता रहेगा. “अद्वैत मन” संकलन में मेरे और आपके मन के वो अछूते भाव संकलित हैं जो हमारे मन के आसपास हमेशा घुमड़ते रहते हैं. इन्हें जब पढ़ेंगे तो आपको भी ऐसा ही लगेगा.पिछले “अनुरागी मन” संकलन में ‘चांद और जुगनू’ की जो श्रृंखला लिखी थी, उसी की तर्ज पर मैंने इस संकलन में ‘गुल और बुलबुल’ की श्रृंखला भी रखी है. ‘गुल और बुलमन के वो भाव हैं जिनका उद्गम भले ही मुझसे हुआ हो पर ये विलीन आप सभी के मन में जाकर ही होते हैं. पिछले ‘अनुरागी मन’ संकलन में 10 कहानियां शामिल होने के कारण मेरे इस नए संकलन के लिए स्वतः ही काफ़ी रचनाएं शेष रहकर संकलित हो गईं, इसी कारण ये संकलन भी शीघ्र ही आप सबके समक्ष प्रस्तुत हो गया. आशा है कि आप इस संकलन को भी अन्य संकलनों की भांति ही अपना स्नेह और आत्मीयता प्रदान करेंगेः-“बरसों बरस लग जाते हैं कभी एक शब्द कहने में कभी एक शब्द से ही कई छंद रचते चले जाते हैं”
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ISBN 13 9789386498694
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