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-:पुस्तक के बारे मे:-
यह पुस्तक "भगवद्गीता" और उसके केंद्रीय सिद्धांतों पर आधारित गहराई से विश्लेषण है, जो आत्मविकास, जीवन की पूर्णता और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मानव यात्रा को दर्शाता है। लेखक ने इसे आत्मा की पूर्णता की ओर एक आध्यात्मिक मार्गदर्शिका के रूप में प्रस्तुत किया है।
मुख्य विषय "पूर्णता" (पूर्णत्व) है — एक ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति भौतिक इच्छाओं, मानसिक अशांति, और बाहरी प्रभावों से मुक्त होकर, अपने अंदर के दिव्य स्वरूप को पहचानता है और उस पर आधारित जीवन जीता है। भगवद्गीता के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से हो, अपने कर्म, भक्ति, ज्ञान और आत्म-अनुशासन के माध्यम से इस पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है।
पुस्तक के अनुसार, मानव जीवन में मानसिक अशांति और संघर्ष का मूल कारण इच्छाओं की अधिकता और आत्म-जागरूकता की कमी है। इच्छाएँ, क्रोध और मोह की श्रृंखला बनाकर व्यक्ति को भ्रमित करती हैं, जिससे वह अपने असली स्वरूप को भूल जाता है। भगवद्गीता सिखाती है कि एक स्थिर और नियंत्रित मन ही व्यक्ति को विवेकपूर्ण निर्णय लेने में मदद करता है, और वह बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना संतुलित जीवन जी सकता है।
यह पुस्तक यह भी बताती है कि मानसिक शांति केवल बाहरी परिस्थितियों से नहीं आती, बल्कि यह व्यक्ति की आंतरिक स्थिति पर निर्भर करती है। जब व्यक्ति दूसरों पर निर्भर होना छोड़कर आत्मनिर्भर होता है, तभी वह अपने जीवन का सच्चा नियंत्रण प्राप्त करता है।
अंततः, यह पुस्तक गीता के सूत्रों के माध्यम से पाठकों को जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने, अपने अनुभवों से सीखने और एक आत्मज्ञानी, शांतिपूर्ण एवं स्वतंत्र जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। यह आत्मा के पूर्ण विकास की एक प्रेरक यात्रा है।
-:अनुवादक:-
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| ISBN 13 | 9788199289512 |
| Book Language | Hindi |
| Binding | Paperback |
| Publishing Year | 2025 |
| Total Pages | 308 |
| Edition | First |
| Translated by | Anil Kumar Gupta |
| GAIN | F0RURCMO4OT |
| Publishers | Garuda Prakashan |
| Category | Religion & Spirituality Hinduism |
| Weight | 310.00 g |
| Dimension | 15.50 x 23.00 x 1.90 |
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-:पुस्तक के बारे मे:-
यह पुस्तक "भगवद्गीता" और उसके केंद्रीय सिद्धांतों पर आधारित गहराई से विश्लेषण है, जो आत्मविकास, जीवन की पूर्णता और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मानव यात्रा को दर्शाता है। लेखक ने इसे आत्मा की पूर्णता की ओर एक आध्यात्मिक मार्गदर्शिका के रूप में प्रस्तुत किया है।
मुख्य विषय "पूर्णता" (पूर्णत्व) है — एक ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति भौतिक इच्छाओं, मानसिक अशांति, और बाहरी प्रभावों से मुक्त होकर, अपने अंदर के दिव्य स्वरूप को पहचानता है और उस पर आधारित जीवन जीता है। भगवद्गीता के माध्यम से यह बताया गया है कि कैसे कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से हो, अपने कर्म, भक्ति, ज्ञान और आत्म-अनुशासन के माध्यम से इस पूर्णता की ओर अग्रसर हो सकता है।
पुस्तक के अनुसार, मानव जीवन में मानसिक अशांति और संघर्ष का मूल कारण इच्छाओं की अधिकता और आत्म-जागरूकता की कमी है। इच्छाएँ, क्रोध और मोह की श्रृंखला बनाकर व्यक्ति को भ्रमित करती हैं, जिससे वह अपने असली स्वरूप को भूल जाता है। भगवद्गीता सिखाती है कि एक स्थिर और नियंत्रित मन ही व्यक्ति को विवेकपूर्ण निर्णय लेने में मदद करता है, और वह बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हुए बिना संतुलित जीवन जी सकता है।
यह पुस्तक यह भी बताती है कि मानसिक शांति केवल बाहरी परिस्थितियों से नहीं आती, बल्कि यह व्यक्ति की आंतरिक स्थिति पर निर्भर करती है। जब व्यक्ति दूसरों पर निर्भर होना छोड़कर आत्मनिर्भर होता है, तभी वह अपने जीवन का सच्चा नियंत्रण प्राप्त करता है।
अंततः, यह पुस्तक गीता के सूत्रों के माध्यम से पाठकों को जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने, अपने अनुभवों से सीखने और एक आत्मज्ञानी, शांतिपूर्ण एवं स्वतंत्र जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। यह आत्मा के पूर्ण विकास की एक प्रेरक यात्रा है।
-:अनुवादक:-
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| ISBN 13 | 9788199289512 |
| Book Language | Hindi |
| Binding | Paperback |
| Publishing Year | 2025 |
| Total Pages | 308 |
| Edition | First |
| Translated by | Anil Kumar Gupta |
| GAIN | F0RURCMO4OT |
| Publishers | Garuda Prakashan |
| Category | Religion & Spirituality Hinduism |
| Weight | 310.00 g |
| Dimension | 15.50 x 23.00 x 1.90 |
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