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यह “स्फुलिंग” मेरे अंतराल से तब तब टूटे हैं , जब जब कोई अग्निबाण, मुझे बीचोंबीच, पार तक बेध गया है, और मैं ध्वान्त हुआ सा विवश होकर रह गया हूं । मेरी आंखें टूट टूट गई हैं, भाव बिंदु बिखर गए हैं ! अतः मेरी इन अभिव्यक्तियों की अर्थवत्ता यही है कि इनके शब्द शब्द को मैंने जिया है।
किंतु आज क्षण क्षण, कुछ और ही नया सा मेरे अंतरतम से उभर रहा है। मैं पुनः आश्वस्त होना चाह रहा हूं !
इन स्फूर्तियों का भाव-स्तर मनु-मानस ही है। वही मेरी आस्था का ध्रुव है। उसी भाव भूमि से इनका भावन होना अभीपि्स्त है।
इन कतिपय दृष्टि-बिंदुओं के रहते हुए भी किसी वाद, कोण या दर्शन का कोई मोह वा आग्रह मुझे नहीं ।
जीवन के निसर्ग-सिद्ध सहज विकास में ही मेरी आस्था के बीच निहित हैं।
Book Language | Hindi |
Binding | Hardcover |
Edition | First |
Release Year | 1965 |
GAIN | L6Q4FM1ZVW2 |
Publishers | Manav Prakashan |
Category | Poetry Indian Poetry |
Weight | 250.00 g |
Dimension | 14.00 x 2.00 x 22.00 |
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यह “स्फुलिंग” मेरे अंतराल से तब तब टूटे हैं , जब जब कोई अग्निबाण, मुझे बीचोंबीच, पार तक बेध गया है, और मैं ध्वान्त हुआ सा विवश होकर रह गया हूं । मेरी आंखें टूट टूट गई हैं, भाव बिंदु बिखर गए हैं ! अतः मेरी इन अभिव्यक्तियों की अर्थवत्ता यही है कि इनके शब्द शब्द को मैंने जिया है।
किंतु आज क्षण क्षण, कुछ और ही नया सा मेरे अंतरतम से उभर रहा है। मैं पुनः आश्वस्त होना चाह रहा हूं !
इन स्फूर्तियों का भाव-स्तर मनु-मानस ही है। वही मेरी आस्था का ध्रुव है। उसी भाव भूमि से इनका भावन होना अभीपि्स्त है।
इन कतिपय दृष्टि-बिंदुओं के रहते हुए भी किसी वाद, कोण या दर्शन का कोई मोह वा आग्रह मुझे नहीं ।
जीवन के निसर्ग-सिद्ध सहज विकास में ही मेरी आस्था के बीच निहित हैं।
Book Language | Hindi |
Binding | Hardcover |
Edition | First |
Release Year | 1965 |
GAIN | L6Q4FM1ZVW2 |
Publishers | Manav Prakashan |
Category | Poetry Indian Poetry |
Weight | 250.00 g |
Dimension | 14.00 x 2.00 x 22.00 |
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Garuda Prakashan
₹199.00

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