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ABOUT THE BOOK:
अधिकतर लोग गधे को मूर्ख समझते हैं और प्रायः मूर्ख लोगों को गधे की उपाधि दे देते है। अतिशयोक्ति न माना जाये यदि मै यह कहूँ कि वे सब लोग मूर्ख हैं जो गधे को मूर्ख कहते या समझते हैं।
गधा? बहुत ही जिम्मेदार और परिश्रमी पशु है जिसकी बराबरी कोई भी पशु, यहाँ तक कि घोडा या हाथी भी नहीं कर सकते हैं।
शास्त्रों में जैसा गधों के गुणों का वर्णन किया गया है वैसा किसी पशु के गुणों का वर्णन नही किया है, क्योंकि गधे जैसे गुण किसी अन्य पशु मे हैं ही नहीं, हाँ पाशविकता भले अधिक हो सकती है! शास्त्र में लिखा है
अविश्रान्तो वहेद्भारं, शीतोष्णं चापि विन्दति।
ससंतोषस्तथा नित्यं,
त्रीणि शिक्षेत् गर्दभात्
ये जो तीन गर्दभ गुण बताये हैं वे अन्य पशुओं में तो होते ही नहीं, अधिकांश मनुष्यों में भी नहीं पाये जाते हैं, इसलिए विशेष निर्देश दिया गया है कि सफलता चाहने वाले मनुष्यों को गधे से ये तीन विशिष्ट गर्दभ गुण सीखने चाहिए। वे गुण हैं--
1- अविश्रान्तो वहेद्भारं, अर्थात बिना थके अपनी जिम्मेदारी, या पीठ पर रखे भार को ढोते रहना।
2- शीतोष्णं चापि विन्दति,
अर्थात ठन्ड या गर्मी के मौसमों में विन्दास होकर अपने काम में लगे रहना।
3- ससन्तोषस्तथा नित्यम्,
अर्थात हर स्थिति में सन्तुष्ट रहना। कभी हडताल आदि की धमकी न देना।
आगे कहागया है कि गधा के ये तीनो गुण प्रशंसनीय ही नहीं आचरणीय भी हैं। मनुष्यों को ये गुण गधा से सीखने चाहिए। जो व्यक्ति ये तीन गर्दभ गुण सीख जाता है वह गधा महान बन जाता है!
ऐसे व्यक्ति सहनशील और बिना डरे अपने मार्ग पर चलने वाले होते हैं और धूर्तता या चालाकी उनके पास भी नहीं फटकती है।
अनुक्रमणिका
अध्याय-1: एक गधे की हत्या
अध्याय-2: पान्चजन्य का प्रचन्ड घोष
अध्याय-3: म्लेच्छविहीन अखण्ड हिन्दू राष्ट्र
अध्याय-4: आओ फिरसे दिया जलायैं
अध्याय-5: मेरा भारत हिन्दूराष्ट्र क्यों नहीं ?
अध्याय-6: बहुत भयानक आहट भीषण गृहयुद्ध की सुनाई दे रही है देश में?
अध्याय-7: एक मेंढक की मृत्यु कथा
अध्याय-8: एक सूअर की बोधकथा
अध्याय-9: हिन्दू पुनरुत्थान और आप
अध्याय-10: 1946 में इस्लामी देशों की संख्या 6 थी आज 57 है
अध्याय-11: RSS की कहानी
अध्याय-12: बंगाल का बंटवारा
अध्याय-13: हिंदू जब मुसलमान हो जाता है तो कितना घातक हो जाता है
अध्याय-14: और मगरमच्छ के आंसू रो पड़ा ओवैसी
अध्याय-15: पिशाच गाथा
अध्याय-16: क्या एक्ट 30ए- समाप्त हो सकता है!
अध्याय-17: आकस्मिक और आश्चर्यजनक घटनायैं
अध्याय-18: बे-ईमान और आस्थाहीन कौम
अध्याय-19: हमारी कायरता पर विश्व में थूथू
अध्याय-20: कुछ यक्ष प्रश्नों का समाधान
अध्याय-21: 3 साल में AIIMS में अंगदान
अध्याय-22: हिन्दू और ईद
अध्याय-23: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अस्तित्व और विकास
अध्याय-24: सुप्रिम कोर्ट के षड्यंत्र
अध्याय-25: मृत्यु नाटिका
अध्याय-26: भारत वर्ष के इतिहास से क्रूर मजाक
अध्याय-27: मगरमच्छों से बचें मोदी
अध्याय-28: भारत को सोने की चिड़िया" बनाने वाला असली राजा"?
अध्याय-29: मोहम्मद अली जिन्ना को भारत रत्न कब?
अध्याय-30: हिन्दुओं में अछूत नहीं होते थे
अध्याय-31: अकबर द गटर के कीड़े की कहानी
अध्याय-32: हिन्दू मुस्लिम भाई भाई ?
अध्याय-33: लुटेरा गांधी परिवार
अध्याय-34: क्या राहुल गांधी भाग जायैगे?
अध्याय-35: भारत के प्राचीन विद्याकेन्द्र
अध्याय-36: अग्निपथ अग्निपथ
अध्याय-37: भगवद्गीता जयन्ती 14 दिसम्बर
अध्याय-38: असली/ नकली नवरत्न
अध्याय-39: विद्वानों, राजपुरुषो और विचारकों की दृष्टि में इस्लाम
अध्याय-40: विदेशी विद्वानों और दार्शनिकों के मत में हिन्दुत्व
अध्याय-41: इस्लाम से छुट्टी कब और कैसे
अध्याय-42: न्याय व्यवस्था पर रोना आता है (राजा मर गया)
अध्याय-43: तेजोमहालय का इतिहास
अध्याय-44: क़ुतुब मीनार की वास्तविकता
अध्याय-45: जामा मस्जिद खाली करो
अध्याय-46: हर हर गंगे
अध्याय-47: कौन बनेगा करोड़पति
अध्याय-48: दिवाली की फुलझडियां
अध्याय-49: अग्रिम प्रधानमंत्री श्री योगी
अध्याय-50: आवाहन
अध्याय-51: सनातन, क्रिश्चियन व इस्लाम का तुलनात्मक अध्ययन
प्रस्तावना
धनुषबाण वा वेणु लो श्याम रूप के संग
मुझ पर चढ़ने से रहा कृष्ण ! दूसरा रंग!!
इस पुस्तक के लेखन और संकलन का आशय और निहितार्थ यह है कि क्या आप राक्षसों के प्रति सजग, सचेत है? यदि नीचे जैसी सशस्त्र भीड़ यकायक आपके दरबाजे पर आ जाये तो क्या आपने सामना करने की तैयारी कर रखी है?
जिहादियों का आक्रमण
हो सकता है कि इस उद्वोधन पर भी विवाद हो जाये। कोई इसे आत्मसुरक्षोद्वोधन बतायेगा तो कोई खामख्वाह अफवाह फैलाना। तुष्टिकरणवादी जन्तु साम्प्रदायिक और भाईचारे में बाधक बतायैगे।
सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ सर्वज्ञ श्रीकृष्ण विवादों के उद्भव के सम्बन्ध में स्पष्ट कर रहे हैं कि--
नैवमेतद्यथात्थत्वम् यदहम् वच्मि तत् तथा ।
एवम् विवदताम् हेतु: शक्तयो में दुरत्त्यया: ।।
(भागवत)
अर्थात् लोगों में, विद्वानों में प्रायः विवाद होता रहता है कि तुम जो कह रहे हो वैसा नहीं है, अपितु मैं जो कहरहा हूं वास्तविकता वैसी है। इस निरन्तर चलनेवाले विवाद का कारण यह है कि मेरी शक्तियां दुरूढ हैं, सहज समझ में आने वाली नहीं है।
प्रायः लोग वास्तविकता के अलग अलग अंगों का स्पर्श या दर्शन कर पाते हैं और उनका यह अनुभव एक दृष्टि से सत्य भी होता है और दूसरी दृष्टि से इसे असत्य भी कहा जा सकता है! पूर्ण जानकारी का अभाव ही विवाद का कारण बनता है!
काल और गति भी कभी विवाद का कारण बन जाते हैं।
काल अर्थात समय। समय भी अपनी सत्यता बताने केलिए सापेक्षता की अपेक्षा रखता है।
कुछ कहते हैं कि अन्तरिक्ष में समय अपनी गति बदल देता है और अन्तरिक्ष में या किसी अन्य ग्रह पर जब एक घंटा समाप्त होता है तब तक हमारी पृथ्वी पर सापेक्षया कई घंटे बीत जाते हैं! तो कुछ कहते हैं कि अन्य ग्रहों की ग्रेविटी के अनुसार हमारी घड़ी की चाल में फ़र्क आ जाता है, समय की गति में नहीं!
कुछ कहते हैं कि:--
समय बड़ा बलवान है, नहीं मनुज बलवान।
भीलन लूटीं गोपिका वहि अर्जुन वहि बान!
यहां सन्दर्भ यह है कि महाभारत के 38वर्ष बाद जब यादव आपस में लड़ मरे और भगवान श्रीकृष्ण स्वधाम पधार गए तथा समुद्र बड़े बड़े हिलोरों से द्वारका को डुबोने को उद्यत दिखा तब द्वारका में से अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की सभी रानियों को और उनके प्रपौत्र वज्रनाभ को लेकर मथुरा को प्रस्थान किया था।मार्ग में रात्रि में वनवासी भीलों ने आक्रमण कर के सभी रानियों के आभूषण लूट लिये! यहां समय की गतिशीलता की हामी के पुरोधा अपनी मान्यता को सिद्ध करने के लिए उदाहरण खोज कर यह बता रहे हैं कि देखो ! उस समय वहां त्रैलोक्यश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन मौजूद था और उसके पास उसका वही गान्डीव धनुष और दिव्य बाण भी मौजूद थे, फिर भी न अर्जुन कुछ कर सका और न उसके दिव्य बाण। और कृष्ण की रानियां लुटती रही और लुटगयीं, इसलिए मनुष्य नहीं समय बलवान होता है!
प्रतिवादी लोग कहते हैं कि अर्जुन धर्मयुद्ध करता था। उस समय रात्रि होने से भीलों का वध अधर्म होता। इस लिए अर्जुन ने अपना धनुष नहीं उठाया और किंकर्त्तव्यविमूढ़ बना देखता रह गया। अन्यथा कौरवों की दर्जनों अक्षौहिणी सेना का नाश करने वाले अर्जुन के सामने वे भील क्या चीज थे! इसलिए समय नहीं धर्म बड़ा होता है।
समय भी विवाद का विषय बन गया।
कोई कहताहै--
भाग कर बच नहीं सका कोई
समय सबसे बड़ा शिकारी है!
कोई कहता है कि -
समय सबसे बड़ा छलिया है। कोई कितना भी प्रयत्न कर ले, परन्तु जब तक समय अपनी अनुकूलता नहीं देता है तब तक प्रयत्न सफल नहीं हो पाते हैं।
इसका भी कोई प्रतिवाद कर सकता है? अर्थात् काल और गति भी विवाद के विषय बन जाते हैं।
कुछ हितकारी उपदेश ग्रन्थ विवाद को निम्नलोगो का शगल बताते है--
"विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेशां परपीडनाय
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय, दानाय च रक्षणाय।"
अर्थात् जो दुष्ट हैं उनके लिए विद्या विवाद का विषय होती है,धन उनके लिए अहंकार का कारण बनता है और उनकी शक्ति दूसरो को कष्ट देने के लिए ही होती है।जबकि सज्जन पुरुषों की विद्या ज्ञान का प्रसार करने के लिए और उनका धन दान के लिए तथा शक्ति कमजोरों की रक्षा करने के लिए होती है।
हमारी संस्कृति में शास्त्रार्थ भी वादविवाद के रूप में मान्य किया गया है। और शास्त्रार्थ ज्ञानी, विद्वानों द्वारा ही किया जासकता है। विवाद और विवेचना का आपसी सम्बन्ध भी है।
इस पुस्तक में वर्णित राजनैतिक विषय भी कहीं कहीं लोगों की मान्यताओं से हटकर है, इसलिए विवाद का विषय बनेगा ही।
इस पुस्तक के लेख एक एक करके प्रतिदिन देश के बीस शीर्षस्थ पुरुषों के पास ईमेल द्वारा भेजे गये थे। लेकिन यह सोचकर दु:ख होता है कि उनमें से किसी एक ने भी मेरे इस श्रम के बारे में "ठीक या गलत, सार्थक या निरर्थक" कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं दिया! उन महानुभावों की सूची यहां संलग्न कर रहा हूं। अब मैंने इसे सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने का निश्चय किया है। शायद कोई तो इसके बारे में कुछ लिखकर मेरे श्रम को सार्थक करेगा।
मेंने चूंकि अपने इन लेखों को नित्य नित्य अलग अलग लिख कर भेजे थे इस लिए कुछ विषय रिपीट भी हुए होंगे, यह सहज और स्वाभाविक है, इसलिए भिज्ञ लोग मेरे इस लेखन में पुनरुक्ति दोष स्थापित न करें। हो सकता है कि लेखन में स्वयं मैं भी भ्रम से कहीं भ्रमित हो गया होऊं तो आशा करता हूं कि भिज्ञ लोग मुझे सचेत करैंगे
मुनियों को भी भ्रम सम्भवहै असम्मान क्या इसमें ?
किन्तु एक भ्रम ऐसा भी है सर्वनाश है जिसमें
अगर सर्प की भ्रान्ति रज्जु में मात्र विनोद वरण है,
किन्तु सर्पको रज्जु समझना तो प्रत्यक्ष मरण है
इसलिए इन लेखों के सम्पादन में मैं सायास बचता रहा हूं।
किसी को मालूम हो या न हो, मैं बताये देता हूं कि भारत के संविधान में न्याय व्यवस्था सम्बन्धी 95% कानून मनुस्मृति के सिद्धान्तो पर आधारित है,भले ही देशके बहुत से लोग मनु को गाली देते हौं! उसीतरह इस पुस्तक में मेरे द्वारा व्यक्त किए गए विचार 100% वासुदेव श्रीकृष्ण के गीतोपदेश पर आधारित है। उनके सिद्धांत ही सर्वकालिक राजनीति के सिद्धांत होने योग्य है!
इसलिए मैं स्पष्ट कर दूं कि --
उन्हीं के मतलब की कह रहा हूं जुबान मेरी है, बात उनकी
उन्हीं की महफ़िल संवारता हूं चिराग मेरी है रात उनकी
फकत मेरा हाथ चल रहा है उन्हीं का मतलब निकल रहा है
उन्हीं का मजमूं, उन्हीं का कागज कलम उन्हीं की दबात उनकी
ISBN 13 | 9798885751940 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2024 |
Total Pages | 272 |
Edition | First |
GAIN | VEY9MJ75QOK |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Entertainment & Sports Contemporary Historical Fiction |
Weight | 280.00 g |
Dimension | 14.00 x 22.00 x 2.00 |
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ABOUT THE BOOK:
अधिकतर लोग गधे को मूर्ख समझते हैं और प्रायः मूर्ख लोगों को गधे की उपाधि दे देते है। अतिशयोक्ति न माना जाये यदि मै यह कहूँ कि वे सब लोग मूर्ख हैं जो गधे को मूर्ख कहते या समझते हैं।
गधा? बहुत ही जिम्मेदार और परिश्रमी पशु है जिसकी बराबरी कोई भी पशु, यहाँ तक कि घोडा या हाथी भी नहीं कर सकते हैं।
शास्त्रों में जैसा गधों के गुणों का वर्णन किया गया है वैसा किसी पशु के गुणों का वर्णन नही किया है, क्योंकि गधे जैसे गुण किसी अन्य पशु मे हैं ही नहीं, हाँ पाशविकता भले अधिक हो सकती है! शास्त्र में लिखा है
अविश्रान्तो वहेद्भारं, शीतोष्णं चापि विन्दति।
ससंतोषस्तथा नित्यं,
त्रीणि शिक्षेत् गर्दभात्
ये जो तीन गर्दभ गुण बताये हैं वे अन्य पशुओं में तो होते ही नहीं, अधिकांश मनुष्यों में भी नहीं पाये जाते हैं, इसलिए विशेष निर्देश दिया गया है कि सफलता चाहने वाले मनुष्यों को गधे से ये तीन विशिष्ट गर्दभ गुण सीखने चाहिए। वे गुण हैं--
1- अविश्रान्तो वहेद्भारं, अर्थात बिना थके अपनी जिम्मेदारी, या पीठ पर रखे भार को ढोते रहना।
2- शीतोष्णं चापि विन्दति,
अर्थात ठन्ड या गर्मी के मौसमों में विन्दास होकर अपने काम में लगे रहना।
3- ससन्तोषस्तथा नित्यम्,
अर्थात हर स्थिति में सन्तुष्ट रहना। कभी हडताल आदि की धमकी न देना।
आगे कहागया है कि गधा के ये तीनो गुण प्रशंसनीय ही नहीं आचरणीय भी हैं। मनुष्यों को ये गुण गधा से सीखने चाहिए। जो व्यक्ति ये तीन गर्दभ गुण सीख जाता है वह गधा महान बन जाता है!
ऐसे व्यक्ति सहनशील और बिना डरे अपने मार्ग पर चलने वाले होते हैं और धूर्तता या चालाकी उनके पास भी नहीं फटकती है।
अनुक्रमणिका
अध्याय-1: एक गधे की हत्या
अध्याय-2: पान्चजन्य का प्रचन्ड घोष
अध्याय-3: म्लेच्छविहीन अखण्ड हिन्दू राष्ट्र
अध्याय-4: आओ फिरसे दिया जलायैं
अध्याय-5: मेरा भारत हिन्दूराष्ट्र क्यों नहीं ?
अध्याय-6: बहुत भयानक आहट भीषण गृहयुद्ध की सुनाई दे रही है देश में?
अध्याय-7: एक मेंढक की मृत्यु कथा
अध्याय-8: एक सूअर की बोधकथा
अध्याय-9: हिन्दू पुनरुत्थान और आप
अध्याय-10: 1946 में इस्लामी देशों की संख्या 6 थी आज 57 है
अध्याय-11: RSS की कहानी
अध्याय-12: बंगाल का बंटवारा
अध्याय-13: हिंदू जब मुसलमान हो जाता है तो कितना घातक हो जाता है
अध्याय-14: और मगरमच्छ के आंसू रो पड़ा ओवैसी
अध्याय-15: पिशाच गाथा
अध्याय-16: क्या एक्ट 30ए- समाप्त हो सकता है!
अध्याय-17: आकस्मिक और आश्चर्यजनक घटनायैं
अध्याय-18: बे-ईमान और आस्थाहीन कौम
अध्याय-19: हमारी कायरता पर विश्व में थूथू
अध्याय-20: कुछ यक्ष प्रश्नों का समाधान
अध्याय-21: 3 साल में AIIMS में अंगदान
अध्याय-22: हिन्दू और ईद
अध्याय-23: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अस्तित्व और विकास
अध्याय-24: सुप्रिम कोर्ट के षड्यंत्र
अध्याय-25: मृत्यु नाटिका
अध्याय-26: भारत वर्ष के इतिहास से क्रूर मजाक
अध्याय-27: मगरमच्छों से बचें मोदी
अध्याय-28: भारत को सोने की चिड़िया" बनाने वाला असली राजा"?
अध्याय-29: मोहम्मद अली जिन्ना को भारत रत्न कब?
अध्याय-30: हिन्दुओं में अछूत नहीं होते थे
अध्याय-31: अकबर द गटर के कीड़े की कहानी
अध्याय-32: हिन्दू मुस्लिम भाई भाई ?
अध्याय-33: लुटेरा गांधी परिवार
अध्याय-34: क्या राहुल गांधी भाग जायैगे?
अध्याय-35: भारत के प्राचीन विद्याकेन्द्र
अध्याय-36: अग्निपथ अग्निपथ
अध्याय-37: भगवद्गीता जयन्ती 14 दिसम्बर
अध्याय-38: असली/ नकली नवरत्न
अध्याय-39: विद्वानों, राजपुरुषो और विचारकों की दृष्टि में इस्लाम
अध्याय-40: विदेशी विद्वानों और दार्शनिकों के मत में हिन्दुत्व
अध्याय-41: इस्लाम से छुट्टी कब और कैसे
अध्याय-42: न्याय व्यवस्था पर रोना आता है (राजा मर गया)
अध्याय-43: तेजोमहालय का इतिहास
अध्याय-44: क़ुतुब मीनार की वास्तविकता
अध्याय-45: जामा मस्जिद खाली करो
अध्याय-46: हर हर गंगे
अध्याय-47: कौन बनेगा करोड़पति
अध्याय-48: दिवाली की फुलझडियां
अध्याय-49: अग्रिम प्रधानमंत्री श्री योगी
अध्याय-50: आवाहन
अध्याय-51: सनातन, क्रिश्चियन व इस्लाम का तुलनात्मक अध्ययन
प्रस्तावना
धनुषबाण वा वेणु लो श्याम रूप के संग
मुझ पर चढ़ने से रहा कृष्ण ! दूसरा रंग!!
इस पुस्तक के लेखन और संकलन का आशय और निहितार्थ यह है कि क्या आप राक्षसों के प्रति सजग, सचेत है? यदि नीचे जैसी सशस्त्र भीड़ यकायक आपके दरबाजे पर आ जाये तो क्या आपने सामना करने की तैयारी कर रखी है?
जिहादियों का आक्रमण
हो सकता है कि इस उद्वोधन पर भी विवाद हो जाये। कोई इसे आत्मसुरक्षोद्वोधन बतायेगा तो कोई खामख्वाह अफवाह फैलाना। तुष्टिकरणवादी जन्तु साम्प्रदायिक और भाईचारे में बाधक बतायैगे।
सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ सर्वज्ञ श्रीकृष्ण विवादों के उद्भव के सम्बन्ध में स्पष्ट कर रहे हैं कि--
नैवमेतद्यथात्थत्वम् यदहम् वच्मि तत् तथा ।
एवम् विवदताम् हेतु: शक्तयो में दुरत्त्यया: ।।
(भागवत)
अर्थात् लोगों में, विद्वानों में प्रायः विवाद होता रहता है कि तुम जो कह रहे हो वैसा नहीं है, अपितु मैं जो कहरहा हूं वास्तविकता वैसी है। इस निरन्तर चलनेवाले विवाद का कारण यह है कि मेरी शक्तियां दुरूढ हैं, सहज समझ में आने वाली नहीं है।
प्रायः लोग वास्तविकता के अलग अलग अंगों का स्पर्श या दर्शन कर पाते हैं और उनका यह अनुभव एक दृष्टि से सत्य भी होता है और दूसरी दृष्टि से इसे असत्य भी कहा जा सकता है! पूर्ण जानकारी का अभाव ही विवाद का कारण बनता है!
काल और गति भी कभी विवाद का कारण बन जाते हैं।
काल अर्थात समय। समय भी अपनी सत्यता बताने केलिए सापेक्षता की अपेक्षा रखता है।
कुछ कहते हैं कि अन्तरिक्ष में समय अपनी गति बदल देता है और अन्तरिक्ष में या किसी अन्य ग्रह पर जब एक घंटा समाप्त होता है तब तक हमारी पृथ्वी पर सापेक्षया कई घंटे बीत जाते हैं! तो कुछ कहते हैं कि अन्य ग्रहों की ग्रेविटी के अनुसार हमारी घड़ी की चाल में फ़र्क आ जाता है, समय की गति में नहीं!
कुछ कहते हैं कि:--
समय बड़ा बलवान है, नहीं मनुज बलवान।
भीलन लूटीं गोपिका वहि अर्जुन वहि बान!
यहां सन्दर्भ यह है कि महाभारत के 38वर्ष बाद जब यादव आपस में लड़ मरे और भगवान श्रीकृष्ण स्वधाम पधार गए तथा समुद्र बड़े बड़े हिलोरों से द्वारका को डुबोने को उद्यत दिखा तब द्वारका में से अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की सभी रानियों को और उनके प्रपौत्र वज्रनाभ को लेकर मथुरा को प्रस्थान किया था।मार्ग में रात्रि में वनवासी भीलों ने आक्रमण कर के सभी रानियों के आभूषण लूट लिये! यहां समय की गतिशीलता की हामी के पुरोधा अपनी मान्यता को सिद्ध करने के लिए उदाहरण खोज कर यह बता रहे हैं कि देखो ! उस समय वहां त्रैलोक्यश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन मौजूद था और उसके पास उसका वही गान्डीव धनुष और दिव्य बाण भी मौजूद थे, फिर भी न अर्जुन कुछ कर सका और न उसके दिव्य बाण। और कृष्ण की रानियां लुटती रही और लुटगयीं, इसलिए मनुष्य नहीं समय बलवान होता है!
प्रतिवादी लोग कहते हैं कि अर्जुन धर्मयुद्ध करता था। उस समय रात्रि होने से भीलों का वध अधर्म होता। इस लिए अर्जुन ने अपना धनुष नहीं उठाया और किंकर्त्तव्यविमूढ़ बना देखता रह गया। अन्यथा कौरवों की दर्जनों अक्षौहिणी सेना का नाश करने वाले अर्जुन के सामने वे भील क्या चीज थे! इसलिए समय नहीं धर्म बड़ा होता है।
समय भी विवाद का विषय बन गया।
कोई कहताहै--
भाग कर बच नहीं सका कोई
समय सबसे बड़ा शिकारी है!
कोई कहता है कि -
समय सबसे बड़ा छलिया है। कोई कितना भी प्रयत्न कर ले, परन्तु जब तक समय अपनी अनुकूलता नहीं देता है तब तक प्रयत्न सफल नहीं हो पाते हैं।
इसका भी कोई प्रतिवाद कर सकता है? अर्थात् काल और गति भी विवाद के विषय बन जाते हैं।
कुछ हितकारी उपदेश ग्रन्थ विवाद को निम्नलोगो का शगल बताते है--
"विद्या विवादाय धनं मदाय, शक्ति: परेशां परपीडनाय
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय, दानाय च रक्षणाय।"
अर्थात् जो दुष्ट हैं उनके लिए विद्या विवाद का विषय होती है,धन उनके लिए अहंकार का कारण बनता है और उनकी शक्ति दूसरो को कष्ट देने के लिए ही होती है।जबकि सज्जन पुरुषों की विद्या ज्ञान का प्रसार करने के लिए और उनका धन दान के लिए तथा शक्ति कमजोरों की रक्षा करने के लिए होती है।
हमारी संस्कृति में शास्त्रार्थ भी वादविवाद के रूप में मान्य किया गया है। और शास्त्रार्थ ज्ञानी, विद्वानों द्वारा ही किया जासकता है। विवाद और विवेचना का आपसी सम्बन्ध भी है।
इस पुस्तक में वर्णित राजनैतिक विषय भी कहीं कहीं लोगों की मान्यताओं से हटकर है, इसलिए विवाद का विषय बनेगा ही।
इस पुस्तक के लेख एक एक करके प्रतिदिन देश के बीस शीर्षस्थ पुरुषों के पास ईमेल द्वारा भेजे गये थे। लेकिन यह सोचकर दु:ख होता है कि उनमें से किसी एक ने भी मेरे इस श्रम के बारे में "ठीक या गलत, सार्थक या निरर्थक" कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं दिया! उन महानुभावों की सूची यहां संलग्न कर रहा हूं। अब मैंने इसे सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने का निश्चय किया है। शायद कोई तो इसके बारे में कुछ लिखकर मेरे श्रम को सार्थक करेगा।
मेंने चूंकि अपने इन लेखों को नित्य नित्य अलग अलग लिख कर भेजे थे इस लिए कुछ विषय रिपीट भी हुए होंगे, यह सहज और स्वाभाविक है, इसलिए भिज्ञ लोग मेरे इस लेखन में पुनरुक्ति दोष स्थापित न करें। हो सकता है कि लेखन में स्वयं मैं भी भ्रम से कहीं भ्रमित हो गया होऊं तो आशा करता हूं कि भिज्ञ लोग मुझे सचेत करैंगे
मुनियों को भी भ्रम सम्भवहै असम्मान क्या इसमें ?
किन्तु एक भ्रम ऐसा भी है सर्वनाश है जिसमें
अगर सर्प की भ्रान्ति रज्जु में मात्र विनोद वरण है,
किन्तु सर्पको रज्जु समझना तो प्रत्यक्ष मरण है
इसलिए इन लेखों के सम्पादन में मैं सायास बचता रहा हूं।
किसी को मालूम हो या न हो, मैं बताये देता हूं कि भारत के संविधान में न्याय व्यवस्था सम्बन्धी 95% कानून मनुस्मृति के सिद्धान्तो पर आधारित है,भले ही देशके बहुत से लोग मनु को गाली देते हौं! उसीतरह इस पुस्तक में मेरे द्वारा व्यक्त किए गए विचार 100% वासुदेव श्रीकृष्ण के गीतोपदेश पर आधारित है। उनके सिद्धांत ही सर्वकालिक राजनीति के सिद्धांत होने योग्य है!
इसलिए मैं स्पष्ट कर दूं कि --
उन्हीं के मतलब की कह रहा हूं जुबान मेरी है, बात उनकी
उन्हीं की महफ़िल संवारता हूं चिराग मेरी है रात उनकी
फकत मेरा हाथ चल रहा है उन्हीं का मतलब निकल रहा है
उन्हीं का मजमूं, उन्हीं का कागज कलम उन्हीं की दबात उनकी
ISBN 13 | 9798885751940 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2024 |
Total Pages | 272 |
Edition | First |
GAIN | VEY9MJ75QOK |
Publishers | Garuda Prakashan |
Category | Entertainment & Sports Contemporary Historical Fiction |
Weight | 280.00 g |
Dimension | 14.00 x 22.00 x 2.00 |
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Garuda Prakashan
₹339.00
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