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इस संग्रह में कविताएँ सात खंडों में रखी गई हैं। इन खंडों में उत्तरोत्तर विकसित होता हुआ एक संवेदनात्मक ग्राफ मौजूद है। इसमें एक के बाद एक संवेदनाएं, विचार और मनः स्थितियाँ अंकित हुई हैं। चौतरफा दम तोड़ते जाने के त्रासद-- एहसास गिरते चले जाने की अनुभूति के साथ लिपटे हुए हैं भीतरी बाहरी घुमड़न, उद्वेलन, छटपटाहट और संघर्ष के कई रूप जो इन्हें समाज और संस्कृति के ज्वलंत प्रश्नों के सामने खड़ा कर देते हैं।
इन कविताओं में न तो रंग है न बहार; ना कोई छंद वा अलंकार; न रिमझिम, न फुहार; है तो बस एक मानवीय सीत्कार, सरोकार ! यह न तो किन्ही वादों का दामन पकड़े हैं, न ही विशिष्ट व्यंजनाओं अथवा प्रायोजित प्रस्तुत विधान में उलझीं हैं; ना किन्ही नई पुराने छंदों रसों में बंधी सनी है। ना ही किन्ही नए प्रयोगों के चमत्कार हैं इनमें। इनमें नाना विध विविध स्तरों पर, मानवीय स्तिथियों, संबंधों, रिश्तों व्यक्तित्वों मूल्यों व शूलों का चित्रण, ध्वनयन है; जो कहीं व्यंग्य तो कहीं विसंगति कहीं विडंबना तो कहीं विरक्ति बनकर उभरा है। अधिकांश में व्यंग्य है, कहीं सीधा,कहीं तिरछा; कहीं कुछ तीखा भी! आदमी, जिंदगी, उसका दर्द, नियति एवं सत्य ही इन कविताओं का यथार्थ वा कथ्य हैं; जिसे कुछ सादगी, कुछ ताजगी; कुछ सहज से; कुछ महज़ से कहने की कोशिश है। इसलिए भाषा और शैली का चमत्कार भी इनमें नहीं है। एक तरह का आंतरिक विस्फोट है यह जो भीतर से कहीं लावे की तरह फूटता, पिघलता वा निकलता है; जो अपनी भाषा,शैली, स्वर, लय, ताल और ताप सब साथ लाता है; जो किन्हीं लेबलों और बिल्लों की राह नहीं तकता। नए-पुराने होने वा दिखने का भी कोई दावा, दंभ वा मोह नहीं। प्रश्न केवल सार्थकता, यथार्थता, प्रासंगिकता वा जीवांतता का है।
Book Language | Hindi |
Binding | Hardcover |
Edition | First |
Release Year | 1996 |
GAIN | SXRBWF2E2EN |
Publishers | Manav Prakashan |
Category | Packages Newly added books |
Weight | 250.00 g |
Dimension | 14.00 x 2.00 x 22.00 |
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इस संग्रह में कविताएँ सात खंडों में रखी गई हैं। इन खंडों में उत्तरोत्तर विकसित होता हुआ एक संवेदनात्मक ग्राफ मौजूद है। इसमें एक के बाद एक संवेदनाएं, विचार और मनः स्थितियाँ अंकित हुई हैं। चौतरफा दम तोड़ते जाने के त्रासद-- एहसास गिरते चले जाने की अनुभूति के साथ लिपटे हुए हैं भीतरी बाहरी घुमड़न, उद्वेलन, छटपटाहट और संघर्ष के कई रूप जो इन्हें समाज और संस्कृति के ज्वलंत प्रश्नों के सामने खड़ा कर देते हैं।
इन कविताओं में न तो रंग है न बहार; ना कोई छंद वा अलंकार; न रिमझिम, न फुहार; है तो बस एक मानवीय सीत्कार, सरोकार ! यह न तो किन्ही वादों का दामन पकड़े हैं, न ही विशिष्ट व्यंजनाओं अथवा प्रायोजित प्रस्तुत विधान में उलझीं हैं; ना किन्ही नई पुराने छंदों रसों में बंधी सनी है। ना ही किन्ही नए प्रयोगों के चमत्कार हैं इनमें। इनमें नाना विध विविध स्तरों पर, मानवीय स्तिथियों, संबंधों, रिश्तों व्यक्तित्वों मूल्यों व शूलों का चित्रण, ध्वनयन है; जो कहीं व्यंग्य तो कहीं विसंगति कहीं विडंबना तो कहीं विरक्ति बनकर उभरा है। अधिकांश में व्यंग्य है, कहीं सीधा,कहीं तिरछा; कहीं कुछ तीखा भी! आदमी, जिंदगी, उसका दर्द, नियति एवं सत्य ही इन कविताओं का यथार्थ वा कथ्य हैं; जिसे कुछ सादगी, कुछ ताजगी; कुछ सहज से; कुछ महज़ से कहने की कोशिश है। इसलिए भाषा और शैली का चमत्कार भी इनमें नहीं है। एक तरह का आंतरिक विस्फोट है यह जो भीतर से कहीं लावे की तरह फूटता, पिघलता वा निकलता है; जो अपनी भाषा,शैली, स्वर, लय, ताल और ताप सब साथ लाता है; जो किन्हीं लेबलों और बिल्लों की राह नहीं तकता। नए-पुराने होने वा दिखने का भी कोई दावा, दंभ वा मोह नहीं। प्रश्न केवल सार्थकता, यथार्थता, प्रासंगिकता वा जीवांतता का है।
Book Language | Hindi |
Binding | Hardcover |
Edition | First |
Release Year | 1996 |
GAIN | SXRBWF2E2EN |
Publishers | Manav Prakashan |
Category | Packages Newly added books |
Weight | 250.00 g |
Dimension | 14.00 x 2.00 x 22.00 |
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Garuda Prakashan
₹199.00

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