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ताहिर असलम गोरा का उपन्यास, “तहज़ीबी रंजिशें” कनाडा में रहने वाले पाकिस्तानी प्रवासियों के जीवन और मनोवैज्ञानिक संघर्षों को बारीकी से चित्रित करने के साथ-साथ, उनके व्यक्तिगत अनुभवों की भी एक दुर्लभ अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करता है। इसकी भाषा मौलिक, वाकपटु, सारगर्भित और नवीन है। सादात हसन मंटो के बाद मानवीय भावनाओं (कामेक्षा) को व्यक्त करने वाले, ताहिर गोरा दुसरे उर्दू लेखक माने जा सकते हैं।
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ताहिर असलम गोरा का उपन्यास, “तहज़ीबी रंजिशें” कनाडा में रहने वाले पाकिस्तानी प्रवासियों के जीवन और मनोवैज्ञानिक संघर्षों को बारीकी से चित्रित करने के साथ-साथ, उनके व्यक्तिगत अनुभवों की भी एक दुर्लभ अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करता है। इसकी भाषा मौलिक, वाकपटु, सारगर्भित और नवीन है। सादात हसन मंटो के बाद मानवीय भावनाओं (कामेक्षा) को व्यक्त करने वाले, ताहिर गोरा दुसरे उर्दू लेखक माने जा सकते हैं।
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Garuda Prakashan
₹272.00

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