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Swami Vivekanand-Ek Drishticon
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Swami Vivekanand-Ek Drishticon
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स्वामी विवेकानंद की जीवनीकार रोमा रोला ने लिखा है कि स्वामी विवेकानंद का दूसरा होना असंभव है! वह जहां कहीं भी पहुंचे अद्वितीय रहे! एक अर्थ में वह इस कलियुग में साक्षात ईश्वर के प्रतिनिधि थे क्योंकि सब पर प्रभुत्व ईश्वर की तरह जमा लेना और उनके ही बस की बात थी! शिकागो संभाषण के बाद वहां के सबसे बड़े अखबार ने लिखा था जिस देश में धर्म का इतना बड़ा प्रवर्तक और चिंतक हो उस देश में कोई और विद्वान जाकर धर्म की व्याख्या करे, उसका प्रचार -प्रसार करे तो यह उसकी सबसे बड़ी मूर्खता होगी ! स्वामी विवेकानंद का विचार था -‘भारत केवल बौद्धिक चिंतन तक ना रहे बल्कि व्यवहार के धरातल पर भी मानवीय उत्कर्ष का कार्य करें’, और इस तरह समस्त मानवता का कल्याण किया जा सकता है ! स्वामी जी का मानना था कि जब भाव भरेंगे तभी ज्ञान आएगा और जब ज्ञान आएगा तभी अज्ञानता मिटेगी ! स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र दर्शन सिर्फ समृद्ध संपन्न राष्ट्र का नहीं था, बल्कि एक स्वाभिमानी राष्ट्र का दर्शन था! उनका सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समुन्नत भारत की कल्पना करता है करीब तीन साल तक वह अमेरिका और इंग्लैंड में रहे, लेकिन भारत की तड़पती मनुष्यता की पीड़ा का बोझ सदैव बना रहा, उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक वह समाप्त नहीं होगा मैं विराम नहीं लूंगा ! एक बार की बात है पंजाब के कुछ संत उनसे वेदांत पर शास्त्रार्थ करने पहुंचे, स्वामी जी उस समय सूखे से पीड़ित बेहाल जनता की पीड़ा के शमन के उपाय ढूंढ रहे थे ! कई बार आग्रह करने के बाद जब स्वामी जी से बोले हम आपसे वेदांत पर बात करने आए हैं, आप बात करिए या अपनी पराजय मानिए तब स्वामी जी ने कहा आप सबको प्यास से मर रहे लोगों की पीड़ा की व्यथा नहीं है और आप वेदांत पर बात करने आए हैं? पहले आप मनुष्यता का वेदांत पढ़िए!’
Product Details
ISBN 13 9788196097042
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 48
Author Karam Singh Karma
Editor 2023
GAIN N9JUSA9IQEB
Product Dimensions 5.50 x 8.50
Category Packages   Historical Books Package  
Weight 150.00 g

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स्वामी विवेकानंद की जीवनीकार रोमा रोला ने लिखा है कि स्वामी विवेकानंद का दूसरा होना असंभव है! वह जहां कहीं भी पहुंचे अद्वितीय रहे! एक अर्थ में वह इस कलियुग में साक्षात ईश्वर के प्रतिनिधि थे क्योंकि सब पर प्रभुत्व ईश्वर की तरह जमा लेना और उनके ही बस की बात थी! शिकागो संभाषण के बाद वहां के सबसे बड़े अखबार ने लिखा था जिस देश में धर्म का इतना बड़ा प्रवर्तक और चिंतक हो उस देश में कोई और विद्वान जाकर धर्म की व्याख्या करे, उसका प्रचार -प्रसार करे तो यह उसकी सबसे बड़ी मूर्खता होगी ! स्वामी विवेकानंद का विचार था -‘भारत केवल बौद्धिक चिंतन तक ना रहे बल्कि व्यवहार के धरातल पर भी मानवीय उत्कर्ष का कार्य करें’, और इस तरह समस्त मानवता का कल्याण किया जा सकता है ! स्वामी जी का मानना था कि जब भाव भरेंगे तभी ज्ञान आएगा और जब ज्ञान आएगा तभी अज्ञानता मिटेगी ! स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र दर्शन सिर्फ समृद्ध संपन्न राष्ट्र का नहीं था, बल्कि एक स्वाभिमानी राष्ट्र का दर्शन था! उनका सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समुन्नत भारत की कल्पना करता है करीब तीन साल तक वह अमेरिका और इंग्लैंड में रहे, लेकिन भारत की तड़पती मनुष्यता की पीड़ा का बोझ सदैव बना रहा, उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक वह समाप्त नहीं होगा मैं विराम नहीं लूंगा ! एक बार की बात है पंजाब के कुछ संत उनसे वेदांत पर शास्त्रार्थ करने पहुंचे, स्वामी जी उस समय सूखे से पीड़ित बेहाल जनता की पीड़ा के शमन के उपाय ढूंढ रहे थे ! कई बार आग्रह करने के बाद जब स्वामी जी से बोले हम आपसे वेदांत पर बात करने आए हैं, आप बात करिए या अपनी पराजय मानिए तब स्वामी जी ने कहा आप सबको प्यास से मर रहे लोगों की पीड़ा की व्यथा नहीं है और आप वेदांत पर बात करने आए हैं? पहले आप मनुष्यता का वेदांत पढ़िए!’
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ISBN 13 9788196097042
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Binding Paperback
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