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Sisakta Bachapan Aakhir Kyo

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Product Description
‘सिसकता बचपन आखिर क्यों ?’ यह मात्र पुस्तक नहीं है, वह दर्द है जिसको बाल कल्याण समिति में कार्य करने के दौरान न केवल देखा, बल्कि एक साल से ज्यादा कनाडा में रहने के बावजूद मेरे मन में टीस पैदा करता रहा । आखिर कब तक भावी युवा पीढ़ी के सपनों की बलि चढ़ायी जाती रहेगी। निर्भया काण्ड जैसी दर्दनाक घटनाओं की परिणिति के पश्चात बाल अधिकार कानून संशोधन पारित हो गया। इस संशोधन का सभी ने स्वागत किया, शायद अपनी सुरक्षा के प्रति भयग्रस्त थे, लेकिन ऐसी घटनाओं को अंजाम देने की फितरत किशोर और व्यस्कों में क्यों बढ़ रही है ? यह सोचनीय विषय है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उपेक्षित दृष्टिकोण तथा आर्थिक, सामाजिक विषमता बच्चों के व्यक्तित्व पर कुप्रभाव डाल रही है। हमारे यहां बाल श्रम निवारण, बाल-विवाह प्रतिषेध, किशोर-न्याय, देख-रेख एवं संरक्षण अधिनियम 2015 एवं पोक्सों अनेक कानून पारित हैं। बाल कल्याण समिति एवं किशोर न्याय बोर्ड दोनों में सामाजिक कार्यकर्ता नियुक्त करने का प्रावधान बालकों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखकर किया गया। प्रत्येक जिले में बाल संरक्षण इकाई का गठन है। बाल कल्याण/पुलिस अधिकारी हर थाने पर नियुक्त है, परन्तु फिर भी बचपन सिसक रहा है। देश में बच्चों को शिक्षा से जोड़ने हेतु शिक्षा का अधिकार अधिनियम, मिड-डे-मील या धन-वितरण जैसी व्यवस्थाएं हैं, परन्तु उन सबका लाभ वास्तव में जिसको मिलना चाहिए था, क्या वह मिल पा रहा है ? जितनी ज्यादा नीतियां उतना ही अधिकार भ्रष्टाचार का फैलाव बाल हित को भी प्रभावित कर रहा है। बेहतर होगा कि केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा गरीब एवं अमीर सभी के लिए आयकर विवरण अनिवार्य करके आधार से जोड़ दिया जाए और यह विवरण कार्यवाही निःशुल्क उपलब्ध हो, उसी के आधार पर धनराशि आवश्यकता मूल्यांकन के आधार पर जरूरतमंद गरीब बच्चों के खाते में सीधे आॅनलाइन पहुंचे जिससे परिवार के बच्चे बालश्रम एवं भीख मांगने जैसे कार्य के लिए विवश न हो सके। यह सुविधा 18 वर्ष तक बच्चों को मिले, यह राशि आर्थिक स्तर के आधार पर देय हो, न कि लड़के-लड़की, जाति-धर्म के विभेद पर आधारित हो। यह पुस्तक बचपन की पीड़ा की अभिव्यक्ति के साथ सभी प्रबुद्ध जन, व्यवसायी वर्ग, प्रशासन, पुलिस एवं बालहित संरक्षण से जुड़े सामाजिक संस्थाओं एवं व्यक्तिओं से अपील है कि देश के बचपन को संवारने में योगदान दें।
Product Details
ISBN 13 | 9789384312923 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Total Pages | 64 |
Edition | 2016 |
Author | Dr. Geeta Sharma |
Category | Culture, society and language Social |
Weight | 100.00 g |
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‘सिसकता बचपन आखिर क्यों ?’ यह मात्र पुस्तक नहीं है, वह दर्द है जिसको बाल कल्याण समिति में कार्य करने के दौरान न केवल देखा, बल्कि एक साल से ज्यादा कनाडा में रहने के बावजूद मेरे मन में टीस पैदा करता रहा । आखिर कब तक भावी युवा पीढ़ी के सपनों की बलि चढ़ायी जाती रहेगी। निर्भया काण्ड जैसी दर्दनाक घटनाओं की परिणिति के पश्चात बाल अधिकार कानून संशोधन पारित हो गया। इस संशोधन का सभी ने स्वागत किया, शायद अपनी सुरक्षा के प्रति भयग्रस्त थे, लेकिन ऐसी घटनाओं को अंजाम देने की फितरत किशोर और व्यस्कों में क्यों बढ़ रही है ? यह सोचनीय विषय है। मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उपेक्षित दृष्टिकोण तथा आर्थिक, सामाजिक विषमता बच्चों के व्यक्तित्व पर कुप्रभाव डाल रही है। हमारे यहां बाल श्रम निवारण, बाल-विवाह प्रतिषेध, किशोर-न्याय, देख-रेख एवं संरक्षण अधिनियम 2015 एवं पोक्सों अनेक कानून पारित हैं। बाल कल्याण समिति एवं किशोर न्याय बोर्ड दोनों में सामाजिक कार्यकर्ता नियुक्त करने का प्रावधान बालकों के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखकर किया गया। प्रत्येक जिले में बाल संरक्षण इकाई का गठन है। बाल कल्याण/पुलिस अधिकारी हर थाने पर नियुक्त है, परन्तु फिर भी बचपन सिसक रहा है। देश में बच्चों को शिक्षा से जोड़ने हेतु शिक्षा का अधिकार अधिनियम, मिड-डे-मील या धन-वितरण जैसी व्यवस्थाएं हैं, परन्तु उन सबका लाभ वास्तव में जिसको मिलना चाहिए था, क्या वह मिल पा रहा है ? जितनी ज्यादा नीतियां उतना ही अधिकार भ्रष्टाचार का फैलाव बाल हित को भी प्रभावित कर रहा है। बेहतर होगा कि केन्द्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा गरीब एवं अमीर सभी के लिए आयकर विवरण अनिवार्य करके आधार से जोड़ दिया जाए और यह विवरण कार्यवाही निःशुल्क उपलब्ध हो, उसी के आधार पर धनराशि आवश्यकता मूल्यांकन के आधार पर जरूरतमंद गरीब बच्चों के खाते में सीधे आॅनलाइन पहुंचे जिससे परिवार के बच्चे बालश्रम एवं भीख मांगने जैसे कार्य के लिए विवश न हो सके। यह सुविधा 18 वर्ष तक बच्चों को मिले, यह राशि आर्थिक स्तर के आधार पर देय हो, न कि लड़के-लड़की, जाति-धर्म के विभेद पर आधारित हो। यह पुस्तक बचपन की पीड़ा की अभिव्यक्ति के साथ सभी प्रबुद्ध जन, व्यवसायी वर्ग, प्रशासन, पुलिस एवं बालहित संरक्षण से जुड़े सामाजिक संस्थाओं एवं व्यक्तिओं से अपील है कि देश के बचपन को संवारने में योगदान दें।
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ISBN 13 | 9789384312923 |
Book Language | Hindi |
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