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भारतवर्ष के विविध धर्मशास्त्र, धर्म के परम तत्त्व को सार्वकालीन, सार्वलौकिक तथा सार्वजनीन मानते हैं। भारतवर्ष के धर्मवेत्ताओं ने, इसीलिए, धर्म को सनातन की संज्ञा दी है। आधार के भेद से, धर्म के परम तत्त्व का परिवर्तन अथवा विपर्यय अचिन्तनीय है। किन्तु आधार का अनन्त भेद भी संसार का सनातन सत्य है। धर्म के परम तत्त्व को, व्यावहारिक रूप धारण करने के लिए, आधार के भेदानुकूल ही चरितार्थ होना पड़ता है। इसीलिए भारतवर्ष में मनीषियों ने "स्वधर्म" की कल्पना की है व्यावहारिक जगत में, प्रत्येक आधार, अपने स्वधर्म का आचरण करके ही, धर्म के परम तत्त्व को उपलब्ध करता है। स्वधर्म का मूल है स्वभाव। आधार के स्वभाव-भेद से ही धर्म का परम तत्त्व स्वधर्म के माध्यम से व्यक्त होता है। स्वधर्म के आचरण से आधार का स्वभाव अभिव्यक्ति प्राप्त करता है। स्वभाव की अभिव्यक्ति से आधार की आत्मनिष्ठ शक्ति स्फूर्त होती है। तब शक्तिमान आधार स्वराज्य में स्थित हो जाता है। यदि कोई आधार अपने स्वधर्म का आचरण नहीं करता तो उसके स्वराज्य की स्थिति असम्भव हो जाती है। स्वधर्म का स्खलन होने पर आधार का स्वभाव कुण्ठित होने लगता है। स्वभाव की कुण्डा आधार की शक्ति को क्षीण कर देती है। और शक्तिहीन की पराधीनता दुर्निवार्य है।
ISBN 13 | 9789385485244 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2023 |
Total Pages | 450 |
Edition | First |
Publishers | Voice of India |
Category | Indian Classics Voice of India Books |
Weight | 580.00 g |
Dimension | 14.00 x 21.50 x 4.50 |
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भारतवर्ष के विविध धर्मशास्त्र, धर्म के परम तत्त्व को सार्वकालीन, सार्वलौकिक तथा सार्वजनीन मानते हैं। भारतवर्ष के धर्मवेत्ताओं ने, इसीलिए, धर्म को सनातन की संज्ञा दी है। आधार के भेद से, धर्म के परम तत्त्व का परिवर्तन अथवा विपर्यय अचिन्तनीय है। किन्तु आधार का अनन्त भेद भी संसार का सनातन सत्य है। धर्म के परम तत्त्व को, व्यावहारिक रूप धारण करने के लिए, आधार के भेदानुकूल ही चरितार्थ होना पड़ता है। इसीलिए भारतवर्ष में मनीषियों ने "स्वधर्म" की कल्पना की है व्यावहारिक जगत में, प्रत्येक आधार, अपने स्वधर्म का आचरण करके ही, धर्म के परम तत्त्व को उपलब्ध करता है। स्वधर्म का मूल है स्वभाव। आधार के स्वभाव-भेद से ही धर्म का परम तत्त्व स्वधर्म के माध्यम से व्यक्त होता है। स्वधर्म के आचरण से आधार का स्वभाव अभिव्यक्ति प्राप्त करता है। स्वभाव की अभिव्यक्ति से आधार की आत्मनिष्ठ शक्ति स्फूर्त होती है। तब शक्तिमान आधार स्वराज्य में स्थित हो जाता है। यदि कोई आधार अपने स्वधर्म का आचरण नहीं करता तो उसके स्वराज्य की स्थिति असम्भव हो जाती है। स्वधर्म का स्खलन होने पर आधार का स्वभाव कुण्ठित होने लगता है। स्वभाव की कुण्डा आधार की शक्ति को क्षीण कर देती है। और शक्तिहीन की पराधीनता दुर्निवार्य है।
ISBN 13 | 9789385485244 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Publishing Year | 2023 |
Total Pages | 450 |
Edition | First |
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