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Samaaj Ka Praharee
by   Jagat Pal Singh (Author)  
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Samaaj Ka Praharee
Product Description
महत्वाकांक्षी सिकंदर सारे विश्व को जीतने के लिए भारत आता है और उसकी भेंट होती है एक ऐसे सच्चे संन्यासी से जिसे सिकंदर अपने साथ यूनान ले जाना चाहता है, क्योंकि उसके गुरु अरस्तु ने कहा था कि भारत से अपने साथ एक संन्यासी को ले आना। देखें तो कि भारत में किस प्रकार के संन्यासी होते हैं। वह संन्यासी अपने में मस्त है। उसका आना-जाना सब बंद हो चुका है। वह सिकंदर के साथ कहीं नहीं जाना चाहता। सिकंदर धमकी देता है कि गर्दन काट दूंगा, अगर इनकार किया। संन्यासी बेफिक्री से जवाब देता है- काटो, जैसे तुम मेरी गर्दन को काटते देखोगे, वैसे मैं भी अपनी गर्दन को कटते देखूंगा। मेरे हिसाब से तो मेरी गर्दन बहुत पहले से कट चुकी है जिस दिन से मेरा अहंकार विसर्जित हुआ है, उसी दिन से अपनी गर्दन कट चुकी है। तुम नाहक काटने का कष्ट करोगे। वह संन्यासी निष्कपट है, मस्त है, सिकंदर विश्व विजय के बाद भी ऐसा अभय संन्यासी नहीं देखा। आज देश में ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि छोटे बड़े सिकंदर बनने की दौड़ में लोग लगे हुए हैं और वास्तविक जिंदगी को नहीं जी पा रहे हैं। समाज की सारी व्यवस्था महत्वकांक्षा पर खड़ी है और इसी दौड़ में हम सब जीवन के यथार्थ को नहीं जी पा रहे हैं। जिसको जीना नितांत आवश्यक है। इस पुस्तक में जो लेख लिखे गए हैं उसमें समाज की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक और जाति धर्म से ऊपर उठकर समाज को दिशा दिखाने का प्रयास किया गया है।
Product Details
ISBN 13 9789394369177
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 130
Author Jagat Pal Singh
Editor 2022
GAIN XW6VV4WI7OK
Product Dimensions 5.50 x 8.50
Category Indian Classics   Article  
Weight 100.00 g

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महत्वाकांक्षी सिकंदर सारे विश्व को जीतने के लिए भारत आता है और उसकी भेंट होती है एक ऐसे सच्चे संन्यासी से जिसे सिकंदर अपने साथ यूनान ले जाना चाहता है, क्योंकि उसके गुरु अरस्तु ने कहा था कि भारत से अपने साथ एक संन्यासी को ले आना। देखें तो कि भारत में किस प्रकार के संन्यासी होते हैं। वह संन्यासी अपने में मस्त है। उसका आना-जाना सब बंद हो चुका है। वह सिकंदर के साथ कहीं नहीं जाना चाहता। सिकंदर धमकी देता है कि गर्दन काट दूंगा, अगर इनकार किया। संन्यासी बेफिक्री से जवाब देता है- काटो, जैसे तुम मेरी गर्दन को काटते देखोगे, वैसे मैं भी अपनी गर्दन को कटते देखूंगा। मेरे हिसाब से तो मेरी गर्दन बहुत पहले से कट चुकी है जिस दिन से मेरा अहंकार विसर्जित हुआ है, उसी दिन से अपनी गर्दन कट चुकी है। तुम नाहक काटने का कष्ट करोगे। वह संन्यासी निष्कपट है, मस्त है, सिकंदर विश्व विजय के बाद भी ऐसा अभय संन्यासी नहीं देखा। आज देश में ऐसी स्थिति पैदा हो रही है कि छोटे बड़े सिकंदर बनने की दौड़ में लोग लगे हुए हैं और वास्तविक जिंदगी को नहीं जी पा रहे हैं। समाज की सारी व्यवस्था महत्वकांक्षा पर खड़ी है और इसी दौड़ में हम सब जीवन के यथार्थ को नहीं जी पा रहे हैं। जिसको जीना नितांत आवश्यक है। इस पुस्तक में जो लेख लिखे गए हैं उसमें समाज की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक और जाति धर्म से ऊपर उठकर समाज को दिशा दिखाने का प्रयास किया गया है।
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ISBN 13 9789394369177
Book Language Hindi
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