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Rasadesha (2 Vols. Set)
Rasadesha (2 Vols. Set)
Product Description
सौन्दर्यशास्त्र का वह अध्याय, जहाँ कला साधना से साध्य बन जाती है, जहाँ कला और कलाकार एकरूप और एकरस हो जाते हैं। यह रसदेश निरतिशय सौन्दर्य का देश है, जिस सौन्दर्य की छाया से सुन्दरताएं जन्म लेती हैं। सौन्दर्य की विराटता, अनन्तता, सम्पूर्णता और अनिर्वचनीयता। यह रसदेश भारत के उस महान् संगीतज्ञ की चेतना-भूमि है, जिन्हें संगीत सम्राट् तानसेन का गुरु माना जाता है, जिन्हें गानकला गन्धर्व कहा गया था µ स्वामी हरिदास। वृन्दावन की निकुजें में निवास करते हुए स्वामी हरिदासजी अपनी धुन में ध्रुपद रचना करते एवं उनका गायन करते थे। ये संगीत रचनाएं उनकी शिष्य-परम्परा में आगे चलकर केलिमाल और सिद्धान्त के पद के रूप में सामने आईं। केलिमाल को वृन्दावन के रसिकों ने अपनी गु“यनिधि के रूप में सँजोकर रऽा। केलिमाल में संगीत के सिद्धान्त भी छिपे हुए हैं µ राग ही में रंग र“यौ, रंग के समुद्र में ए दोउ झागे।
Product Details
ISBN 13 9788124609309
Book Language Hindi
Binding Hardcover
Total Pages 1
Edition 1st
Release Year 2018
Publisher D.K. Printworld Pvt. Ltd.
Author Rajendra Ranjan Chaturvedi
GAIN Q6QK53P06TK
Category Indian Knowledge System   Philosophy  
Weight 2,600.00 g
Dimension 14.00 x 22.00 x 1.80

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सौन्दर्यशास्त्र का वह अध्याय, जहाँ कला साधना से साध्य बन जाती है, जहाँ कला और कलाकार एकरूप और एकरस हो जाते हैं। यह रसदेश निरतिशय सौन्दर्य का देश है, जिस सौन्दर्य की छाया से सुन्दरताएं जन्म लेती हैं। सौन्दर्य की विराटता, अनन्तता, सम्पूर्णता और अनिर्वचनीयता। यह रसदेश भारत के उस महान् संगीतज्ञ की चेतना-भूमि है, जिन्हें संगीत सम्राट् तानसेन का गुरु माना जाता है, जिन्हें गानकला गन्धर्व कहा गया था µ स्वामी हरिदास। वृन्दावन की निकुजें में निवास करते हुए स्वामी हरिदासजी अपनी धुन में ध्रुपद रचना करते एवं उनका गायन करते थे। ये संगीत रचनाएं उनकी शिष्य-परम्परा में आगे चलकर केलिमाल और सिद्धान्त के पद के रूप में सामने आईं। केलिमाल को वृन्दावन के रसिकों ने अपनी गु“यनिधि के रूप में सँजोकर रऽा। केलिमाल में संगीत के सिद्धान्त भी छिपे हुए हैं µ राग ही में रंग र“यौ, रंग के समुद्र में ए दोउ झागे।
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ISBN 13 9788124609309
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Binding Hardcover
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Author Rajendra Ranjan Chaturvedi
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