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KATHA BITHI
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Product Description
मेरी दिवंगत धर्मपत्नी श्रीमती वीना श्रीवास्तव का हिन्दी साहित्य में बहुत रुझान था। क्रमबद्ध तरीके से नहीं लेकिन जब भी भाव और विचार आते थे लिख डालती थीं। चाहे डायरी के पीछे या स्वतंत्र पृष्ठों पर लिखा करती थीं। सरस और मधुर भावों वाली वीना श्रीवास्तव जी, मन से कवि और पेशे से छोटे बच्चों के स्कूल की प्रिंसिपल थीं।उनकी बहुत इच्छा थी कि उनकी रचनाओं को छपवाया जाये। वे बहुत दिनों तक जीवित नहीं रही, वर्ष 2008 के अगस्त माह में परलोक सिधार गई। उनकी दो चार रचनाओं को प्रकाशित कर उनकी इच्छा को सम्मानित करना हमारा एक ध्येय है।छात्र जीवन में हिंदी साहित्य में मेरी बहुत रुचि थी। प्रेमचन्द, जैनेंद्र, यशपाल डाक्टर धर्मवीर भारती आदि की रचनाएँ मैं बहुत चाव से पढ़ता था। भारतीय स्टेट बैंक की सेवा में आया तो यदाकदा समय मिलने पर कुछ कविताएँ और कहानियों लिखता था पर उन्हें संजो नहीं पाया था। मैंने अपनी सेवानिवृत्त के उपरांत लिखना प्रारंभ किया है और अपनी रचनाओं को एक गैलरी (वीथिका) में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
Product Details
| ISBN 13 | 9789385083518 |
| Book Language | Hindi |
| Binding | Paperback |
| Total Pages | 104 |
| Author | SHARAD SRIVASTAV |
| Editor | 2016 |
| GAIN | 8MDLS9H2J8S |
| Category | Indian Classics Bhartiye Pustakein |
| Weight | 150.00 g |
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मेरी दिवंगत धर्मपत्नी श्रीमती वीना श्रीवास्तव का हिन्दी साहित्य में बहुत रुझान था। क्रमबद्ध तरीके से नहीं लेकिन जब भी भाव और विचार आते थे लिख डालती थीं। चाहे डायरी के पीछे या स्वतंत्र पृष्ठों पर लिखा करती थीं। सरस और मधुर भावों वाली वीना श्रीवास्तव जी, मन से कवि और पेशे से छोटे बच्चों के स्कूल की प्रिंसिपल थीं।उनकी बहुत इच्छा थी कि उनकी रचनाओं को छपवाया जाये। वे बहुत दिनों तक जीवित नहीं रही, वर्ष 2008 के अगस्त माह में परलोक सिधार गई। उनकी दो चार रचनाओं को प्रकाशित कर उनकी इच्छा को सम्मानित करना हमारा एक ध्येय है।छात्र जीवन में हिंदी साहित्य में मेरी बहुत रुचि थी। प्रेमचन्द, जैनेंद्र, यशपाल डाक्टर धर्मवीर भारती आदि की रचनाएँ मैं बहुत चाव से पढ़ता था। भारतीय स्टेट बैंक की सेवा में आया तो यदाकदा समय मिलने पर कुछ कविताएँ और कहानियों लिखता था पर उन्हें संजो नहीं पाया था। मैंने अपनी सेवानिवृत्त के उपरांत लिखना प्रारंभ किया है और अपनी रचनाओं को एक गैलरी (वीथिका) में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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| ISBN 13 | 9789385083518 |
| Book Language | Hindi |
| Binding | Paperback |
| Total Pages | 104 |
| Author | SHARAD SRIVASTAV |
| Editor | 2016 |
| GAIN | 8MDLS9H2J8S |
| Category | Indian Classics Bhartiye Pustakein |
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