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प्रायः देखा गया है कि पढ़े-लिखे लोग; जो अपने को बुद्धिजीवी मानते हैं; वे धर्म की परंपरा; परिपाटी व उसके वर्तमान स्वरूप की या तो उपेक्षा करते हैं या फिर उसके प्रति व्यंग्यात्मक रवैया अपनाते हैं। उनमें से कुछ का तो यह भी मानना है कि हमारी धार्मिक मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। परंतु उनकी यह सोच वास्तविकता से बहुत परे है; क्योंकि जिन लोगों ने हिंदू धर्म के मूल रूप को जाना व अध्ययन किया है; वे जानते हैं कि हमारे धर्म का एक सुदृढ़ वैज्ञानिक आधार है। आवश्यकता केवल उसके मर्म और मूल स्वरूप को समझने की है।
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प्रायः देखा गया है कि पढ़े-लिखे लोग; जो अपने को बुद्धिजीवी मानते हैं; वे धर्म की परंपरा; परिपाटी व उसके वर्तमान स्वरूप की या तो उपेक्षा करते हैं या फिर उसके प्रति व्यंग्यात्मक रवैया अपनाते हैं। उनमें से कुछ का तो यह भी मानना है कि हमारी धार्मिक मान्यताओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। परंतु उनकी यह सोच वास्तविकता से बहुत परे है; क्योंकि जिन लोगों ने हिंदू धर्म के मूल रूप को जाना व अध्ययन किया है; वे जानते हैं कि हमारे धर्म का एक सुदृढ़ वैज्ञानिक आधार है। आवश्यकता केवल उसके मर्म और मूल स्वरूप को समझने की है।
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Garuda Prakashan
₹290.00

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