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Hasya ke Rang anuradha ke sang
Hasya ke Rang anuradha ke sang
Product Description
21वीं सदी की भागदौड़ ने जीवन के चक्र को इतना तीव्र गति प्रदान कर दी, जिसको भी देखो, वह और अधिक पाने तथा विशेषकर उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे? इस द्वेष के चलते अधिकांश लोगों की दिनचर्या गंभीर होती जा रही है, लोग अपनों से दूर और अपने में उलझते जा रहे हैं। कुछ हालात कुछ जज्बात अब पहले दसे नहीं रहे।संयुक्त परिवार तो अब बहुत कम देखने को मिलता है। वे बातें अब किताबों अथवा ज्ञानचर्या का अंश बनकर रह गईं कि भजन और भोजन संयुक्त रूप से पूरे परिवार के साथ करें तब आनन्द ही कुछ और होता है। अब समय इतना कम लगता है जैसे 24 घंटे कम पड़ने लग जाते हैं, खाना खाते-खाते, बातें भी हो रही हैं, आवश्यक फोन पर चर्चा भी और सामने टी.वी. भी चल रहा है। पहले का संस्कारी मानव अब मानों एक साथ कई कार्य करने वाली मशीन बन कर रह गया है। इसीलिए नीरसता बढ़ गई और डिप्रैशन में लोग जाने लगे ।साल-दो साल से यदि हम मीडिया पर दृष्टि डालें तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया अथवा सिनेमा सबने 'हास्य' को शरीर को स्वस्थ रखने में परम गुणकारी माना है और अब टेलीविजन में तो मानो होड़ सी लग गई है। हास्य पर आधारित सीरियल-लाइव शो खूब देखे-पसन्द किए जाने लगे हैं।
Product Details
ISBN 13 9789386498847
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 64
Author CHIEF EDITOR MANMOHAN SHARMA
Editor 2018
GAIN PM6NDIH0TI5
Category Books   Fiction   Poetry  
Weight 150.00 g

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21वीं सदी की भागदौड़ ने जीवन के चक्र को इतना तीव्र गति प्रदान कर दी, जिसको भी देखो, वह और अधिक पाने तथा विशेषकर उसकी कमीज मेरी कमीज से सफेद कैसे? इस द्वेष के चलते अधिकांश लोगों की दिनचर्या गंभीर होती जा रही है, लोग अपनों से दूर और अपने में उलझते जा रहे हैं। कुछ हालात कुछ जज्बात अब पहले दसे नहीं रहे।संयुक्त परिवार तो अब बहुत कम देखने को मिलता है। वे बातें अब किताबों अथवा ज्ञानचर्या का अंश बनकर रह गईं कि भजन और भोजन संयुक्त रूप से पूरे परिवार के साथ करें तब आनन्द ही कुछ और होता है। अब समय इतना कम लगता है जैसे 24 घंटे कम पड़ने लग जाते हैं, खाना खाते-खाते, बातें भी हो रही हैं, आवश्यक फोन पर चर्चा भी और सामने टी.वी. भी चल रहा है। पहले का संस्कारी मानव अब मानों एक साथ कई कार्य करने वाली मशीन बन कर रह गया है। इसीलिए नीरसता बढ़ गई और डिप्रैशन में लोग जाने लगे ।साल-दो साल से यदि हम मीडिया पर दृष्टि डालें तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया अथवा सिनेमा सबने 'हास्य' को शरीर को स्वस्थ रखने में परम गुणकारी माना है और अब टेलीविजन में तो मानो होड़ सी लग गई है। हास्य पर आधारित सीरियल-लाइव शो खूब देखे-पसन्द किए जाने लगे हैं।
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ISBN 13 9789386498847
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Binding Paperback
Total Pages 64
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GAIN PM6NDIH0TI5
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