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Bhartiy Chitrkala Ka Itihas Medieval Part – 2

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Product Description
प्रस्तुत ग्रन्थ में पूर्व मध्यकाल से लेकर मध्योत्तर काल तक के भारतीय चित्रकला विकास क्रम का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। पूर्व मध्यकाल की चित्रकला में प्राचीन काल (अजंता, बाघ आदि) के शास्त्रीय तत्त्व धीरे-धीरे क्षीण होते गये और उसके स्थान पर प्राकृत तत्त्व समाहित होते गये। उस समय देश वाह्य आक्रान्ताओं में त्रस्त था। इन मुस्लिम आक्रान्ताओं ने अपने मूर्ति-भंजक रवैये के कारण यहां की विपुल कला-सम्पदा को तहस-नहस कर दिया। अतः कला भव्य कला-मण्डपों एवं राज्याश्रयों से निकलकर घर-परिवार या सुरक्षित उपासनागृहों में अपने रूप को सँवारने लगी। इस समय भारत की सनातन सूत्रत्मक एकता के कारण सम्पूर्ण बृहत्तर भारत में प्राकृत चित्र-शैली की अन्तःधारा दिखायी पड़ती है। क्षेत्रनुसार एवं विभिन्न सम्प्रदायों के प्रभाव का अंतर भी उसमें देखा जा सकता है। पूर्व में बौद्ध प्रभाव के कारण बौद्ध धर्म ग्रन्थ चित्रित हुए तो पश्चिम में जैन प्रभाव से जैन ग्रन्थों का अंकन बड़ी मात्र में हुआ। भारत के मध्य में सनातन हिन्दू धर्म का जोर था तो दक्षिण में शैवमत को मानने वालों की संख्या अधिक थी लेकिन सभी क्षेत्र में सभी धर्म एवं मतों को मानने वाले भी थे। इन विशेषताओं और सूक्ष्म अन्तर को देखते हुए उस काल की कला को क्षेत्रनुसार विभाजित कर उसे और समझा जा सकता है। भारत की चारों दिशाओं और मध्य देश की प्राकृत शैली का अध्ययन इसी उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है।
Product Details
ISBN 13 | 9789394369481 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Total Pages | 220 |
Author | Dr. Shyam Bihari Aggarwal and Dr. Jyoti Aggarwal |
Editor | 2022 |
GAIN | 5BCNSVLPSWP |
Product Dimensions | 5.50 x 8.50 |
Category | Packages Historical Books Package |
Weight | 100.00 g |
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प्रस्तुत ग्रन्थ में पूर्व मध्यकाल से लेकर मध्योत्तर काल तक के भारतीय चित्रकला विकास क्रम का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। पूर्व मध्यकाल की चित्रकला में प्राचीन काल (अजंता, बाघ आदि) के शास्त्रीय तत्त्व धीरे-धीरे क्षीण होते गये और उसके स्थान पर प्राकृत तत्त्व समाहित होते गये। उस समय देश वाह्य आक्रान्ताओं में त्रस्त था। इन मुस्लिम आक्रान्ताओं ने अपने मूर्ति-भंजक रवैये के कारण यहां की विपुल कला-सम्पदा को तहस-नहस कर दिया। अतः कला भव्य कला-मण्डपों एवं राज्याश्रयों से निकलकर घर-परिवार या सुरक्षित उपासनागृहों में अपने रूप को सँवारने लगी। इस समय भारत की सनातन सूत्रत्मक एकता के कारण सम्पूर्ण बृहत्तर भारत में प्राकृत चित्र-शैली की अन्तःधारा दिखायी पड़ती है। क्षेत्रनुसार एवं विभिन्न सम्प्रदायों के प्रभाव का अंतर भी उसमें देखा जा सकता है। पूर्व में बौद्ध प्रभाव के कारण बौद्ध धर्म ग्रन्थ चित्रित हुए तो पश्चिम में जैन प्रभाव से जैन ग्रन्थों का अंकन बड़ी मात्र में हुआ। भारत के मध्य में सनातन हिन्दू धर्म का जोर था तो दक्षिण में शैवमत को मानने वालों की संख्या अधिक थी लेकिन सभी क्षेत्र में सभी धर्म एवं मतों को मानने वाले भी थे। इन विशेषताओं और सूक्ष्म अन्तर को देखते हुए उस काल की कला को क्षेत्रनुसार विभाजित कर उसे और समझा जा सकता है। भारत की चारों दिशाओं और मध्य देश की प्राकृत शैली का अध्ययन इसी उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है।
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ISBN 13 | 9789394369481 |
Book Language | Hindi |
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Total Pages | 220 |
Author | Dr. Shyam Bihari Aggarwal and Dr. Jyoti Aggarwal |
Editor | 2022 |
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