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Bharat Ki Shaikshik Dharohar
Bharat Ki Shaikshik Dharohar
Product Description
यूरोपीय विश्वविद्यालयों की स्थापना से बहुत पहले भारत में ज्ञानार्जन के बहु-विषयक केंद्र थे जिन्होंने विश्व भर में ज्ञान क्रांति को बढ़ावा दिया। यह पुस्तक भारत की महान शैक्षिक विरासत को कालक्रमानुसार दर्शाने की आवश्यकता को पूरा करती है। यह पुस्तक उस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का वर्णन करती है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि गुरुओं और आचार्यों द्वारा पीढ़ियों तक छात्रों को ज्ञानार्जन का सौभाग्य मिलता रहे। जैसा लेखिका कहती हैं, “जब तलवारों ने रक्त से अपनी प्यास बुझाई और अकाल ने भूमि को तबाह कर दिया, तब भी भारतीय अपनी प्रज्ञा पर टिके रहे कि ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है।” लेखिका ने वाचिक इतिहास, स्थानीय विद्या, यात्रा वृतांत, उत्तरजीवी साहित्य, शिलालेख, संरक्षित पांडुलिपियों और विद्वानों व जनसाधारण के जीवन वृत्तान्त से जानकारी एकत्र की है। ऐतिहासिक रूप से, यह पुस्तक प्राचीन भारत की परंपराओं से लेकर इसकी विरासत के जानबूझकर विनाश करने तक के एक वृहत् काल को अंकित करती है। यह विद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षा की वर्तमान संरचना में प्राचीन शिक्षण प्रणालियों के सबसे प्रासंगिक पहलुओं को सम्मिलित करने के लिए आज उठाए सकने वाले कदमों की रूपरेखा से भी अवगत कराती है।
Product Details
ISBN 13 9788196041397
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 248
Author सहना सिंह/Translators: नेहा श्रीवास्तव एवं सत्यम
Editor 2023
GAIN ZGKLWOCS4Z4
Product Dimensions 8.5 x 5.5
Category Entertainment & Sports   Non-Fiction  
Weight 214.00 g

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यूरोपीय विश्वविद्यालयों की स्थापना से बहुत पहले भारत में ज्ञानार्जन के बहु-विषयक केंद्र थे जिन्होंने विश्व भर में ज्ञान क्रांति को बढ़ावा दिया। यह पुस्तक भारत की महान शैक्षिक विरासत को कालक्रमानुसार दर्शाने की आवश्यकता को पूरा करती है। यह पुस्तक उस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र का वर्णन करती है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि गुरुओं और आचार्यों द्वारा पीढ़ियों तक छात्रों को ज्ञानार्जन का सौभाग्य मिलता रहे। जैसा लेखिका कहती हैं, “जब तलवारों ने रक्त से अपनी प्यास बुझाई और अकाल ने भूमि को तबाह कर दिया, तब भी भारतीय अपनी प्रज्ञा पर टिके रहे कि ज्ञान से अधिक पवित्र कुछ भी नहीं है।” लेखिका ने वाचिक इतिहास, स्थानीय विद्या, यात्रा वृतांत, उत्तरजीवी साहित्य, शिलालेख, संरक्षित पांडुलिपियों और विद्वानों व जनसाधारण के जीवन वृत्तान्त से जानकारी एकत्र की है। ऐतिहासिक रूप से, यह पुस्तक प्राचीन भारत की परंपराओं से लेकर इसकी विरासत के जानबूझकर विनाश करने तक के एक वृहत् काल को अंकित करती है। यह विद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षा की वर्तमान संरचना में प्राचीन शिक्षण प्रणालियों के सबसे प्रासंगिक पहलुओं को सम्मिलित करने के लिए आज उठाए सकने वाले कदमों की रूपरेखा से भी अवगत कराती है।
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ISBN 13 9788196041397
Book Language Hindi
Binding Paperback
Total Pages 248
Author सहना सिंह/Translators: नेहा श्रीवास्तव एवं सत्यम
Editor 2023
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Product Dimensions 8.5 x 5.5
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