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अयोध्या का मतलब है, जिसे शत्रु जीत न सके। युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब, जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है, जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं, जिसे जीता न जा सके। पर अयोध्या के इस मायने को बदल ये तीन गुंबद राष्ट्र की स्मृति में दर्ज हैं। ये गुंबद हमारे अवचेतन में शासक बनाम शासित का मनोभाव बनाते हैं। सौ वर्षों से देश की राजनीति इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घूम रही है। आजाद भारत में अयोध्या को लेकर बेइंतहा बहसें हुईं। सालों-साल नैरेटिव चला। पर किसी ने उसे बूझने की कोशिश नहीं की। ये सबकुछ इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घटता रहा। अब भी घट रहा है। अब हालाँकि गुंबद नहीं हैं, पर धुरी जस-की-तस है। इस धुरी की तीव्रता, गहराई और सच को पकड़ने का कोई बौद्धिक अनुष्ठान नहीं हुआ, जिसमें इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य को जोड़ने का माद्दा हो, ताकि इतिहास के तराजू पर आप सच-झूठ का निष्कर्ष निकाल सकें। उन तथ्यों से दो-दो हाथ करने के प्रामाणिक, ऐतिहासिक और वैधानिक आधार के भागी बनें।
अनुक्रम
- जानिए इट दर इट कैसे टूटा विवादित ढाँचा —Pgs 27
- वो घटनाक्रम, जिसके बाद विवादित ढाँचा टूट गया —Pgs 123
- 6 दिसंबर से कुछ महीने पहले की वे स्थितियाँ जिनमें विध्वंस के बीज पनपे —Pgs 181
- विवादित ढाँचा टूटने के बाद का हाल —Pgs 273
- साल-दर-साल दम तोड़ता उन्माद —Pgs 369
- अयोध्या में कारसेवा और गोलीकांड के बीच छिपी घटनाओं का ब्योरा —Pgs 383
- राम जन्मभूमि में भूमिपूजन और शिलान्यास का सिलसिलेवार क्रम —Pgs 463
- रामलला की ताला मुक्ति —Pgs 495
- मूर्तियाँ प्रकट हुई —Pgs 500
- नाम एवं स्थान संदर्भ —Pgs 501
ISBN 13 | 9789352667567 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Edition | 1st |
Release Year | 2018 |
GAIN | IFL1BRG5L77 |
Publishers | Prabhat Prakashan |
Category | Culture, society and language Social Impact |
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अयोध्या का मतलब है, जिसे शत्रु जीत न सके। युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब, जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है, जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं, जिसे जीता न जा सके। पर अयोध्या के इस मायने को बदल ये तीन गुंबद राष्ट्र की स्मृति में दर्ज हैं। ये गुंबद हमारे अवचेतन में शासक बनाम शासित का मनोभाव बनाते हैं। सौ वर्षों से देश की राजनीति इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घूम रही है। आजाद भारत में अयोध्या को लेकर बेइंतहा बहसें हुईं। सालों-साल नैरेटिव चला। पर किसी ने उसे बूझने की कोशिश नहीं की। ये सबकुछ इन्हीं गुंबदों के इर्द-गिर्द घटता रहा। अब भी घट रहा है। अब हालाँकि गुंबद नहीं हैं, पर धुरी जस-की-तस है। इस धुरी की तीव्रता, गहराई और सच को पकड़ने का कोई बौद्धिक अनुष्ठान नहीं हुआ, जिसमें इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य को जोड़ने का माद्दा हो, ताकि इतिहास के तराजू पर आप सच-झूठ का निष्कर्ष निकाल सकें। उन तथ्यों से दो-दो हाथ करने के प्रामाणिक, ऐतिहासिक और वैधानिक आधार के भागी बनें।
अनुक्रम
- जानिए इट दर इट कैसे टूटा विवादित ढाँचा —Pgs 27
- वो घटनाक्रम, जिसके बाद विवादित ढाँचा टूट गया —Pgs 123
- 6 दिसंबर से कुछ महीने पहले की वे स्थितियाँ जिनमें विध्वंस के बीज पनपे —Pgs 181
- विवादित ढाँचा टूटने के बाद का हाल —Pgs 273
- साल-दर-साल दम तोड़ता उन्माद —Pgs 369
- अयोध्या में कारसेवा और गोलीकांड के बीच छिपी घटनाओं का ब्योरा —Pgs 383
- राम जन्मभूमि में भूमिपूजन और शिलान्यास का सिलसिलेवार क्रम —Pgs 463
- रामलला की ताला मुक्ति —Pgs 495
- मूर्तियाँ प्रकट हुई —Pgs 500
- नाम एवं स्थान संदर्भ —Pgs 501
ISBN 13 | 9789352667567 |
Book Language | Hindi |
Binding | Paperback |
Edition | 1st |
Release Year | 2018 |
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